हवेली का राज पार्ट ३ - हिंदी सेक्स कहानी
रुपाली की चुदाई की दास्तान
उसके
पति की मौत से जुड़े कई सवाल थे जो उसे 2 दिन
से परेशान कर रहे थे. हवेली जिस जगह पर थी वो गाओं से काफ़ी बाहर थी. मंदिर गाओं
के दूसरी तरफ था. फिर भी कार से मंदिर जाने तक 20 मिनट
से ज़्यादा समय नही लगता था. उसके सिवा पुरुषोत्तम को कहाँ जाना था ये बात कोई नही
जानता था जबकि वो हमेशा घर में बताके जाता था के उसने कहाँ जाना है. पर उस शाम इस बात का उसने किसी से कोई ज़िक्र नही
किया था. उसने कहीं जाना था ये उसने सावित्री देवी को मंदिर छ्चोड़ने के बाद उनसे
कही थी पर तब भी उन्हें नही बताया था के वो कहाँ जा रहा है. उसकी लाश हवेली से
मुश्किल से 10 कदम की दूरी पे मिली थी. वो
सावित्री देवी को छ्चोड़कर वापिस हवेली की तरफ क्यूँ आया था. उसपर 2 गोलियाँ चलाई गयी और लाश रात के 9 बजे के आस पास मिली थी. लाश जिस हालत में मिली
थी उसे देखकर यही लगता था के उसे गोली मुस्किल से 15 मिनट
पहले मारी गयी थी मतलब के उस रात ढल चुकी थी तो रात के सन्नाटे में हवेली में किसी
ने गोली की आवाज़ क्यूँ नही सुनी. वो हवेली से शाम के 5 बजे निकला था, मतलब
के 5.30 तक
उसने अपनी माँ को मंदिर छ्चोड़ दिया होगा. तो फिर अगले 3 घंटे तक वो कहाँ था? उसकी लाश उसकी बहेन कामिनी को मिली थी जो उस
रात गाओं में अपनी किसी सहेली के घर से आ रही थी. रास्ते में पुरुषोत्तम की गाड़ी
खड़ी देखकर उसने गाड़ी रोकी तो गाड़ी में कोई नही था. खून के निशान का पिच्छा किया
तो भाई की लाश मिली. पर उससे 10
मिनट
पहले ही शौर्या सिंग हवेली में आए थे. तो उस वक़्त गाड़ी वहाँ क्यूँ नही थी? हवेली से गाओं तक का पूरा रास्ते पर ठाकुर ने
लॅंप पोस्ट्स लगवा रखे थे और तकरीबन उसी वक़्त घर के सारे नौकर वापिस गाओं जाते थे
फिर उनमें से किसी ने कुच्छ होते क्यूँ नही देखा? पुरुषोत्तम
के 2 आदमी हमेशा उसके साथ होते थे, हथ्यार के साथ पर उस शाम वो अकेला क्यूँ गया? कामिनी भी उस शाम अकेली गयी थी. हिफ़ाज़त के
लिए रखे गये हत्यारबंद आदमी उस शाम कहाँ थे? सोच
सोचकर रूपाली का सर फटने लगा तो उसे भूषण की कही बात फिर याद आने लगी " आपके
पति की हत्या का राज़ इसी हवेली में बंद है. दफ़न है यहीं कहीं"
रूपाली
लाल सारी पेहेन्के नीचे आई तो भूषण खाना बनाकर बड़े घर की सफाई में लगा हुआ था.
रूपाली को देखा तो देखता ही रह गया. 10 साल
से जिसे सफेद सारी में देखा था उसे लाल सारी में एक पल के लिए तो पहचान ही नही
पाया.
"काफ़ी
खूबसूरत लग रही हो बहूरानी" भूषण ने कहा
रूपाली
ने मुस्कुरा कर उसका शुक्रिया अदा किया और सफाई में उसका हाथ बटाने लगी.
"आप
रहने दीजिए"भूषण ने मना किया भी तो रूपाली हटी नही
"ऐसी
अच्छी लगती हैं आप. ऐसी ही रहा करो. भरी जवानी में ही सफेद सारी में लिपटी मत रहा
करो" भूषण ने कहा तो रूपाली ने उसकी तरफ देखा
"पिताजी
ने लाकर दी है" रूपाली ने कहा तो भूषण काम छ्चोड़कर कुच्छ सोचने लगा
"मैं
जानती हून आप क्या सोच रहे हैं काका. कल रात की बात ना. आपने कल रात जो देखा था वो
मेरी मर्ज़ी थी. इस हवेली में फिर से सब कुच्छ पहले जैसा हो उसके लिए सबसे ज़्यादा
ज़रूरी है के पिताजी होश में आए. आअप जानते हैं ना मैं क्या कह रही हूँ?" रूपाली ने पुचछा
भूषण
ने सर इनकार में हिलाया.
"आपकी
ग़लती नही है काका. मैं शायद खुद भी नही जानती के मैं क्या कह रही हूँ, क्या सोच रही हूँ और क्या कर रही हूँ. मैं
सिर्फ़ इतना जानती हूँ के मेरे नंगे जिस्म की हल्की सी झलक पाकर पिताजी ने परसो
पूरा दिन शराब नही पी थी और काफ़ी अरसे बाद अब वो हवेली से बाहर निकले हैं."
रूपाली ने कहाँ तो भूषण ने हैरानी से उसकी तरफ देखा.
"आप
ठीक सोच रहे हो काका."रूपाली ने जैसे उसका चेहरा पढ़ते हुए कहा "और
इसलिए मैने आपसे कहा था के मुझे आपकी मदद चाहिए. ये बात हवेली से बाहर ना निकले.
बदले में आप जो चाहें आपको मिल जाएगा. जो कल रात मैने आपको दिया वो मैं दोबारा
देने को तैय्यार हूँ"
रूपाली
ने जो बे झिझक कहा था वो बात सुनकर भूषण का सर चकराने लगा था. रूपाली कुच्छ करने
वाली है ये बात वो जानता था पर क्या अब समझ आया. वो अपने ही ससुर के साथ सोने की
बात कर रही थी.
"पर
बहूरानी"भूषण से कुच्छ बोलते नही बन पा रहा था.
"पर
क्या काका?" अब दोनो
में से कोई कुच्छ काम नही कर रहा था.
रूपाली
अच्छी तरह से जानती थी के भूषण का खामोश रहना कितना ज़रूरी था. ये बात अगर गाओं
में फेल गयी तो रही सही इज़्ज़त भी चली जाएगी. इस हवेली की तो कोई ख़ास इज़ात नही
बची थी पर उसके आपके पिता और भाई की इज़्ज़त पर भी दाग लग जाएगा. क्या सोचेंगे वो
ये जानकर के उनकी अपनी बेटी अपने ससुर से चुदवा रही है.
"बहूरानी
आपके पिता समान हैं वो. पाप है ये" भूषण ने हिम्मत जोड़कर कहा
"पाप
और पुण्या क्या है काका? मैने तो कभी कोई पाप नही
किया था आज तक पर मुझे क्या मिला?
भारी
जवानी में एक सफेद सारी?"कहते
हुए रूपाली भूषण के करीब आई
"और आप
काका? आप पाप की बात कर रहे हैं? क्या आप मेरे पिता समान नही हैं? कल रात जब मेरी टाँगो के बीच में अपनी उंगलियाँ
घुसा रहे थे तब ये ख्याल आया था आपको के मैं आपकी बेटी जैसी हूँ? जब मेरी छाति को दबा रहे थे तब ये ख्याल आया था
के ये पाप है"रूपाली का चेहरा अब सख़्त हो चला था. वो सीधा भूषण की आँखो में
झाँक रही थी.
"कल जब
मैने आपका अपने मुँह में ले रखा था तब ये ख्याल आया था आपको काका? नही. नही आया था क्यूंकी तब आपके साआँने आपकी
बेटी जैसी एक लड़की नही सिर्फ़ एक औरत थी. मुझमें आपको सिर्फ़ एक औरत का नंगा
जिस्म दिखाई दे रहा था और कुच्छ नही." कहते हुए रूपाली फिर आगे आई और अपनी
सारी का पल्लू गिरा दिया.
सारी
का पल्लू जैसे ही हटा तो ब्लाउस में बंद रूपाली की दोनो छातियाँ भूषण के सामने आ
गयी. ब्लाउस रूपाली की बड़ी बड़ी चुचियों के हिसाब से छ्होटा था इसलिए दोनो
छातियाँ जैसे बाहर को निकलकर गिर रही थी.क्लीवेज ही इतना ज़्यादा दिखाई दे रहा था
के किसी के भी मुँह में पानी आ जाए.भूषण का सर चकराने लगा. उसने अपने मुँह दूसरी
तरफ कर लिया.
"क्या
हुआ काका? रात तो बड़ी ज़ोर से दबाया
था. अब उधर क्यूँ देख रहे हो?"कहते
हुए रूपाली ने भूषण का सर पकड़ा और अपनी चुचियों की तरफ घुमाया
रूपाली
की दोनो छातियाँ अब भूषण के चेहरे से ज़रा ही दूर थी. रूपाली उससे लंबी थी. 70 साल का वो बूढ़ा जिस्मानी तौर पे रूपाली से
कमज़ोर था. उसका चेहरा सिर्फ़ रूपाली की दोनो चुचियो तक ही आ रहा था इसलिए वो उसकी
नज़रों के सामने थी. रूपाली ने फिर वो किया जिससे भूषण की रही सही हिम्मत भी जवाब
दे गयी. उसने भूषण का सर पकड़कर आगे की तरफ खींचा और अपने क्लीवेज में दबा लिया.
इसके साथ ही रूपाली और भूषण दोनो के मुँह से आह निकल गयी.
भूषण का
चेहरा आगे से रूपाली के नंगे क्लीवेज पे दब रहा था. उसके नंगे जिस्म का स्पर्श
मिलते ही भूषण के जिस्म में फिर हलचल होने लगी. बुद्धा ही सही पर था तो मर्द ही.
जब रूपाली ने पकड़ ढीली की तो उसने अपने सर पिछे हटाया और रूपाली की दोनो चुचियों
की तरफ देखने लगा. कल रात उसने एक हाथ से एक छाती दबाई ज़रूर थी पर अंधेरे में
कुच्छ देख ना सका था और दबाई भी बस पल भर के लिए थी. अगले ही पल रूपाली झाड़ गयी
थी और उससे अलग हो गयी थी. उसकी दोनो नज़रें जैसे रूपाली की छातियों से चिपक कर
रही गयी.
"क्या
हुआ काका? अब ध्यान नही आ रहा बेटी और
पाप का?"रूपाली
ने कहा पर भूषण अब उसकी कोई बात नही सुन रहा था. वो तो बस एकटक उसकी चुचियों को
ब्लाउस के उपेर से निहार रहा था. पर उसकी हिम्मत नही पड़ रही थी के इसके अलावा
कुच्छ आगे कर सके.
रूपाली
ने जैसे उसके दिल में उठती ख्वाहिश को ताड़ लिया और अपने ब्लाउस के बटन खोलने लगी.
"लो
काका. आप भी क्या याद रखोगे. इस उमर में एक जवान जिस्म का नज़ारा करो" रूपाली
को खुद पे हैरत होने लगी थी. पिच्छले दो दिन में वो दिमागी तौर पे तो बदल ही गयी
थी पर उसकी ज़ुबान पे एकदम से अलग हो गयी थी. कहाँ दबी दबी सी आवाज़ में बोलने
वाली एक मासूम सी लड़की और कहाँ बेबाक उँची आवाज़ में बोलती एक शेरनी के जैसी औरत
जिसने शब्द भी रंडियों की तरह बोलने शुरू कर दिए थे.
रूपपली
ने बटन तो सारे खोल दिए थे पर ब्लाउस को दोनो तरफ से पकड़ रखा था. भूषण इंतेज़ार
कर रहा था के वो ब्लाउस दोनो तरफ से खोले तो उसे अंदर का नज़ारा मिले पर रूपाली
वैसे ही खड़ी रही.
"क्या
हुआ काका?"रूपाली
ने पुचछा तो भूषण ने उसकी तरफ देखा पर कुच्छ बोला नही. मगर उसकी आँखें सॉफ उसके
दिल की की बात कह रही थी.
"रूपाली
धीरे से मुस्कुराइ और ब्लाउस को दोनो तरफ से छ्चोड़ दिया और ब्रा में बंद उसकी
चुचियाँ भूसान के सामने थी. गोरी चाँदी पे काला ब्रा अलग ही खिल रहा था. भूषण की
साँस तेज़ होने लगी थी. इस उमर में इतनी उत्तेजना उससे बर्दाश्त नही हो रही थी. लग
रहा था जैसे अभी हार्ट अटॅक हो जाएगा.
"ये
आपके लिए है काका. देखो जी भर के देखो" कहते हुए रूपाली ने भूषण का हाथ पकड़ा
और अपनी एक चुचि पे रख दिया. उसने भूषण के हाथ पे थोड़ा ज़ोर डाला और उसका इशारा
पाकर भूषण ने भी अपने हाथ को थोड़ा बंद किया. नतीजा? रूपाली
की छाती थोड़ी सी दब गयी.
"ओह
काका" रूपाली के मुँह से निकल पड़ा"थोड़ा सा और ज़ोर लगाओ"
उसने
कहा तो भूषण ने अपना हाथ और ज़ोर से दबाया और उसकी ब्रा के उपेर से ही छाती को
मसल्ने लगा.
"हां
काका. ऐसे ही. और ज़ोर से. मज़ा आ रहा है ना आपको भी" कहते हुए रूपाली ने
अपनी आँखें बंद कर ली.
भूषण
को इतना इशारा काफ़ी थी. उसने अपना दूसरा हाथ भी रूपाली की छाती पे रख दिया और
दोनो छातियों को दबाने लगा. दोनो की साँस भारी हो चली थी. भूषण कभी उसकी चुचियों
को सहलाता तो कभी ज़ोर लगाकर दबाता पर अब उसके हाथ में इतनी ताक़त नही बची थी.
रूपाली और ज़ोर से दबाओ कह रही थी और भूषण पूरा ज़ोर लगा रहा था. दोनो एकदम चिपके
खड़े थे.
रूपाली
ने अपनी आँखें बंद किए ही अपना एक हाथ थोड़ा नीचे किया और पाजामे के उपेर से भूषण
का लंड टटोलने लगी. उसके जिस्म में आग लगी हुई थी. टांगे कमज़ोर हुई जा रही थी.
उसने भूषण के छ्होटे से लंड को हाथ से पकड़के दबाया. उसे हैरत थी के भूषण का लंड
अब भी बैठा हुआ था पर शायद इस उमर में इससे ज़्यादा वो कर भी नही सकता था. ये
सोचकर रूपाली ने अपना एक हाथ अपनी ब्रा के नीचे रखा और अपनी ब्रा को एक तरफ से
खींचकर अपनी छाती को बाहर निकाल दिया.
अब
उसकी एक छाती ब्रा के अंदर थी और दूसरी नीचे की तरफ से बाहर. वो भूषण से लगी खड़ी
थी और उसका एक हाथ पाजामे के उपेर से लंड हिला रहा था. उसने आँखें खोली तो भूषण
आँखें फाडे उसकी बाहर निकली छाती को देख रहा था. धीरे से भूषण का हाथ उपेर आया और
उसकी नंगी छाती पे पड़ा. रूपाली जैसा पागल होने लगी. घर के बूढ़े नौकर का ही सही
पर हाथ था तो एक मर्द का. उसके निपल्स खड़े हो गये थे. भूषण एक बार फिर उसकी छाती
पे लग गया था और पूरी ताक़त लगाकर दबा रहा था जैसे आटा गूँध रहा हो.
"चूसोगे
नही काका" रूपाली ने कहा और फिर खुद ही अपनी एक छाती को पकड़कर भूषण के मुँह
की तरफ कर दिया. उसका निपल भूषण के मुँह से जा लगा. भूषण ने मुँह खोला और निपल को
मुँह में लेने ही लगा था के रूपाली ने कहा
"चूसो
काका. अपनी बेटी समान लड़की की छाती चूसो. जो करना है करो. पाप को भूल जाओ पर एक
बात याद रखना. ये बात अगर हवेली के बाहर गयी तो गर्दन काटकर हवेली के दरवाज़े पे
टाँग दूँगी"
रूपाली
की आवाज़ में कुच्छ ऐसा था के भूषण अंदर तक काँप गया. जैसे किसी घायल शेरनी के
गुर्र्रने की आवाज़ सुनी हो. उसका खुला मुँह बंद हो गया और वो रूपाली की तरफ देखने
लगा. उसकी आँखों में डर रूपाली को सॉफ नज़र आ रहा था और रूपाली की आँखों में जो था
वो देखकर तो भूषण को लगा के वो पाजामे में ही पेशाब कर देगा.
"डरो
मत काका"रूपाली फिर मुस्कुराइ तो भूषण की जान में जान आई"खेलो मेरे
जिस्म से. ये आपका हो सकता है जब भी आप चाहो बस आपकी ज़ुबान बंद रहे और जो मैं
कहूँ वो हो जाए. आपको मेरे साथ मेरी हर बात मान लेनी होगी बिना कोई सवाल किए. समझे?" रूपाली ने पुचछा. भूषण ने हां में सर हिला
दिया.
तभी
बाहर कार की आवाज़ सुनकर दोनो अलग हो गये. ठाकुर शौर्या सिंग वापस आ गये थे. दोनो
एक दूसरे से अलग हुए और अपने कपड़े ठीक करने लगे.
इससे
पहले के ठाकुर शौर्या सिंग हवेली के अंदर आते, रूपाली
अपने कपड़े ठीक करते हुए जल्दी जल्दी उपेर अपने कमरे की तरफ चली गयी. उसका ब्लाउस
अभी भी खुला हुआ था और एक छाती अब भी ब्रा से बाहर थी. उसने ऐसे ही आगे से ब्लाउस
को दोनो तरफ से थामा और लगभग दौड़ती हुई अपने कमरे में पहुँची. कमरे के अंदर
पहुँचते ही उसे एक लंबी साँस छ्चोड़ दी. ब्लाउस छ्चोड़ दिया और उसकी एक छाती फिर
बाहर निकल पड़ी. रूपाली अंदर से बहुत गरम हो चुकी थी. 2 दिन से यही हो रहा था. 2 बार अपने ससुर और 2 बार भूषण के करीब जाने से उसके जिस्म में जैसे
आग सी लगी हुई थी. उसे खुद अपने उपेर हैरत थी के उसके जिस्म की ये गर्मी इतने सालो
से कहाँ थी जो पिच्छले 2 दिन में बाहर आई थी. वजह
शायद ये थी के उसने अब अपने आपको मानसिक तौर पे बदला था जिसका नतीजा अब पूरे जिस्म
पे नज़र आ रहा था. वो ऐसे ही बिस्तर पे गिर पड़ी और अपनी बाहर निकली छाती को खुद
ही दबाते हुए भूषण की कही बात के बारे में सोचने लगी. उसे इस हवेली के अंदर से ही
तलाश शुरू करनी थी. अब 2 दिन से चल रहे खेल से आगे
बढ़ने का वक़्त आ गया था. उसे चीज़ों को अब अपने हाथ में लेना था. भूषण उसकी
मुट्ठी में आ चुका था. और अब बारी थी इस कड़ी के सबसे ख़ास हिस्से की, ठाकुर शौर्या सिंग की.
रूपाली
शाम तक अपने ही कमरे में रही. भूषण खाने को पुच्छने आया था उसने अपने कमरे में ही
मंगवा लिया. रात का अंधेरा फेल चुका था. भूषण जब खाना देने आया था उसने धीरे से
रूपाली के कान में कहा के ठाकुर साहब ने उसे आज मालिश के लिए माना किया है. कहा है
के आज ज़रूरत नही है.
रूपाली
उसकी बात समझते हुए बोली "आज से उन्हें मालिश की ज़रूरत आपसे नही है
काका" भूष्ण समझ गया के वो क्या कहना चाह रही है. वो इस हवेली में बहुत कुच्छ
होता देख चुका था.
"अब और
ना जाने क्या क्या देखना होगा" सोचते हुए वो वापिस चला गया.
रूपाली
खाना खाकर नीचे आई तो भूषण जा चुका था. अब हवेली में सिर्फ़ वो और शौर्या सिंग रह
गये थे. उसने अपने ससुर के कमरे की तरफ देखा जो शायद अंदर से बंद था. वो कमरे के
आगे से निकली और किचन तक पहुँची. किचन में उसने एक कटोरी में तेल लिया और हल्का सा
गरम किया. हाथ में तेल की कटोरी लिए वो शौर्या सिंग के कमरे तक पहुँची और धीरे से
नॉक किया.
"अंदर
आ जाओ बहू" शौर्या सिंग जैसे उसके आने का ही इंतेज़ार कर रहे थे.
रूपाली
कमरे के अंदर पहुँची. वो लाल सारी में थी. हाथ में तेल की कटोरी थी. ब्लाउस के उपर
का एक बटन उसने खुद ही खोला छ्चोड़ दिया था. तेल की कटोरी एक तरफ रखकर उसके अपने
ससुर की तरफ देखा.
शौर्या
सिंग सिर्फ़ धोती पहने खड़े थे. कुर्ता वो पहले ही उतार चुके थे. शौर्या सिंग और
रूपाली की नज़रें मिली. दोनो ने कुच्छ नही कहा. एक दूसरे की तरफ पल भर देखने के
बाद शौय सिंग बिस्तर पे जाके लेट गये और रूपाली तेल की कटोरी लिए बिस्तर तक
पहुँची. साइड में रखी टेबल पे तेल रखकर वो भी बिस्तर पे चढ़ गयी. अपने ससुर के
बिस्तर पर. लाल सारी में.
शौर्या
सिंग उल्टे पेट के बाल लेटे हुए थे. रूपाली ने पीठ पे थोड़ा तेल गिराया और धीरे
धीरे मालिश करने लगी. उसके हाथ ठाकुर की पूरी पीठ पे फिसल रहे थे. कंधो से शुरू
होकर ठाकुर की गांद तक.
"थोड़ा
सख़्त हाथ से करो बहू" शौर्या सिंग ने कहा तो रूपाली थोड़ा आगे होकर अपने
ससुर के उपेर झुक सी गयी जिससे के उसके हाथ का वज़न ठाकुर के पीठ पे पड़े. वो अपने
घुटनो के बल खड़ी सी थी. घुटने के नीचे का हिस्सा ठाकुर के फेले हुए हाथ को च्छू
रहा था. ठाकुर का हाथ नीचे से उसके पेर पे सटा हुआ था और रूपाली को महसूस हो रहा
था के वो उसे सहला रहे हैं. उसके खुद के जिस्म में धीरे धीरे से फिर वही आग उठ रही
थी जिसे वो पिच्छले 2 दिन से महसूस कर रही थी.
जब वो
पीठ पे हाथ फेरती हुई नीचे ठाकुर की गांद की तरफ जाती और फिर हाथ उपेर लाती तो
उसका हाथ ठाकुर की धोती में हलसा सा अटक जाता. ऐसे ही एक बार जब हाथ फिसलकर नीचे
आया तो नीचे ही चला गया. रूपाली को महसूस ही ना हुआ के कब ठाकुर ने अपनी धोती ढीली
कर दी थी जिसकी वजह से उसका हाथ ठाकुर की धोती के अंदर तक चला गया. शौर्या सिंग ने
धोती के नीचे कुच्छ नही पहेन रखा था इसलिए जब रूपाली का हाथ नीचे गया तो सीधा रेंग
कर ठाकुर की गांद पे चला गया. रूपाली ने फ़ौरन अपना हाथ वापिस खींचा जैसे 100 वॉट का झटका लगा हो और शौर्या सिंग की तरफ देखा
पर वो वैसे ही लेटे रहे जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. रूपाली एक पल के लिए रुकी और
उठकर ठाकुर के पैरो की तरफ आ गयी.
उसने
तेल अपने हाथ में लेकर अपने ससुर की पिंदलियों में पे तेल मलना शुरू किया. घुटनो
के नीचे नीचे उसने सख़्त हाथ से ठाकुर की टाँगो की मालिश शुरू कर दी. वो फिर अपने
घुटनो के बल बिस्तर पे खड़ी सी थी और ठाकुर के दोनो पावं उसके बिल्कुल सामने. जब
वो हाथ घुटनो की तरफ उपेर की और ले जाती तो उसे थोड़ा आगे होकर झुकना पड़ता और हाथ
नीचे की और लाते हुए फिर वापिस पिछे आना पड़ता. मालिश करते हुए रूपाली ने महसोस्स
किया के वो थोडा सा आगे खिसक गयी थी और जब झुककर वापिस पिछे आती तो ठाकुर का पंजा
नीचे से उसकी जाँघ पे अंदर की और टच होता. चूत से सिर्फ़ कुच्छ इंच की दूरी पर.
फिर भी रूपाली वैसे ही मालिश करती रही. ठाकुर के पेर का स्पर्श उसे अच्छा लग रहा
था. उसने नज़र उठाकर ठाकुर के चेहरे की तरफ देखा तो वो दोनो आँखें बंद किए पड़े
थे. धोती खुली होने की वजह से थोड़ी नीचे सरक गयी थी और ठाकुर की गांद आधी खुल गयी
थी.
"सीधे
हो जाइए पिताजी" रूपाली ने बिस्तर के एक तरफ होते हुए कहा.
उसके
पुर हाथों में तेल लगा हुआ था जो उसकी सारी पे भी कई जगह लग चुका था. सारी बिस्तर
पे इधर उधर होने की वजह से सिकुड़कर घुटनो तक उठ गयी थी और घुटनो के नीचे रूपाली
की दोनो टांगे खुल गयी थी.
ठाकुर
उठकर सीधे हुए तो रूपाली को एक पल के लिए नज़रें नीचे करनी पड़ गयी. वजह थी ठाकुर
का लंड जो पूरी तरफ खड़ा हो चुका था और धोती में टेंट बना रहा था. धोती खुली होने
की वजह से ऐसा लग रहा था जैसे लंड के उपेर बस एक कपड़ा सा डाल रखा हो. रूपाली ने ठाकुर के चेहरे की तरफ देखा तो
उन्होने अब भी अपनी दोनो आँखें बंद कर रखी थी. वो फिर धीरे से आगे बढ़ी और ठाकुर
की छाती पे तेल लगाने लगी. तेल लगाकर वो फिर अपने घुटनो के बल खड़ी सी हो गयी और
हाथों पे वज़न डालकर तेल छाती से पेट तक रगड़ने लगी. उसकी नज़र अब भी ठाकुर के
खड़े लंड पे ही चिपकी हुई थी. धोती थोड़ी से नीचे की और सरक गयी थी जिससे उसे
ठाकुर की झाँटें सॉफ नज़र आ रही थी. वो जब तेल रगड़ती नीचे की और जाती तो लंड की
जड़ से बस कुच्छ इंच की दूरी पे ही रुकती. दिल तो उसका कर रहा था के आगे बढ़कर लंड
पकड़ ले पर अपने दिल पे काबू रखा और तेल लगाती रही. इसी चक्कर में उसकी सारी का
पल्लू खिसक कर नीचे गिर पड़ा था जिसे रूपाली ने दोबारा उठाकर ठीक करने की कोशिश
नही की. उसकी दोनो छातियाँ ब्लाउस में उपेर नीचे हो रही थी. उपेर का एक बटन खुला
होने के कारण क्लीवेज काफ़ी हाढ़ तक गहराई तक नज़र आ रहा था. एक ही पोज़िशन में
रहने के कारण रूपाली का घुटना अकड़ने लगा तो उसने अपनी पोज़िशन हल्की सी चेंज के
और उसकी टाँग ठाकुर के हाथ से जा लगी. ठाकुर का हाथ सीधा उसकी घुटनो से नीचे नंगी
टाँग पे आ टिका. पर ना तू रूपाली ने साइड हटने की कोशिश की और ना ही ठाकुर ने अपना
हाथ हटाने की कोशिश की. रूपाली वैसे ही ठाकुर की छाती पे तेल रगड़ती रही और नीचे
धीरे धीरे ठाकुर ने उसकी टाँग को सहलाना शुरू कर दिया. रूपाली की आँखें भी बंद
होने लगी.
अब
मालिश मालिश ना रह गयी थी. रूपाली भी वैसे ही बस एक ही जगह आँखें बंद किया हाथ
ठाकुर की छाती पे रगड़ रही थी और ठाकुर उसकी घुटनो से नीचे नंगी टाँग को सहला रहा
था. अचानक रूपाली ने महसूस किया के ठाकुर का हाथ उसकी सारी में उपेर की और जाने की
कोशिश कर रहा है. जैसे ही ठाकुर की हाथ अंदर उसकी नंगी जाँघ पे लगा तो रूपाली की
दोनो आँखें खुल गयी. उसे झटका सा लगा और वो अंजाने में ही एक तरफ को हो गयी. ठाकुर
का हाथ उसकी टाँग से अलग हो गया.
एक पल
को रूपाली को भी बुरा सा लगा के वो अलग क्यूँ हुई क्यूंकी ठाकुर के सहलाने में उसे
भी मज़ा आ रहा था. उसने फिर थोड़ा सा तेल अपने हाथ में लिया और ठाकुर के पेट पे
डाला. तेल को उसके रगड़कर हाथ सख़्त करने के लिए जैसे ही अपना वज़न अपने हाथ पे
डाला ठाकुर के मुँह से कराह निकल गयी. शायद वज़न कुच्छ ज़्यादा हो गया था. वो
हल्का सा मुड़े और एक हाथ से रूपाली की कमर को पकड़ लिया.
"माफ़
कीजिएगा पिताजी" रूपाली ने ठाकुर की तरफ देखा पर वो कुच्छ नही बोले और आँखें
वैसे ही बंद रही.
रूपाली
ने फिर मालिश करनी शुरू कर दी पर ठाकुर का हाथ वहीं उसकी कमर पे ही रहा. उन्होने
उसकी ब्लाउस और पेटिकोट के बीच के हिस्से से कमर को पकड़ रखा था. नंगी कमर पे उनका
हाथ पड़ते ही रूपाली जैसे हवा में उड़ने लगी. ठाकुर का हाथ धीरे धीरे फिर उसकी कमर
को सहलाने लगा और रूपाली की आँखें फिर बंद हो गयी. वो ठाकुर को पेट को सहलाती रही और
वो उसकी नंगी कमर को. हाथ धीरे से आगे से होकर उसके पेट पे आया और फिर कमर पे चला
गया. अब वो उसके नंगे पेट और कमर को सिर्फ़ सहला नही रहे थे, बल्कि मज़बूती से रगड़ रहे थे. एक बार ठाकुर का
हाथ रूपाली के पेट पे गया तो सरक कर आगे आने की बजाय नीचे की और उसकी गांद पे गया.
उन्होने एक बार हाथ रूपाली की पूरी गांद पे फिराया और फिर उसके एक कूल्हे को अपने
मुट्ठी में पकड़ लिया.
रूपाली
फिर चिहुन्क कर एक तरफ को हुई. वो शायद इन अचानक हो रहे हमलो से थोड़ा सा घबरा सी
जाती पर ठाकुर का हाथ हट जाते ही अगले ही पल खुद अफ़सोस करती क्यूँ ठाकुर के हाथ
का मज़ा आना बंद हो जाता.
"लाइए
आपके हाथ पे कर देती हूँ" कहते हुए रूपाली ने ठाकुर का अपनी तरफ का हाथ सीधा
किया. ठाकुर का पंजा उसके कंधे पे आ गया और वो दोनो हाथ से अपने ससुर की पूरी आर्म
पे तेल लगाके मालिश करने लगी. उसकी सारी का पल्लू अब भी नीचे था और छातियाँ सिर्फ़
ब्लाउस में थी. ब्रा रूपाली आने से पहले ही उतारकर आई थी. उसके ससुर की कलाई उसकी
एक छाती पे दब रही थी जिसकी वजह से ब्लाउस पे पूरा तेल लग गया था. लाल ब्लाउस होने
के बावजूद उसके निपल्स सॉफ नज़र आने लगे थे. जैसे जैसे उसकी मालिश का दबाव ठाकुर
के हाथ पे बढ़ रहा था वैसे वैसे ही उनकी कलाई का दबाव उसकी छाती पे बढ़ रहा था.
धीरे धीरे हाथ कंधे से सरक कर उसके गले पे आ गया और ठाकुर की आर्म उसकी दोनो
छातियों पे दब गयी. रूपाली की साँस भारी हो चली थी और उसे महसूस हो रहा था के
ठाकुर की साँस भी तेज़ हो रही है. रूपाली ने बंद आँखें खोली तो देखा के ठाकुर की
छाती तेज़ी से उपेर नीचे हो रही है. लंड अब पूरा अकड़ चुका था और धोती में हिल रहा
था. धोती अब भी लंड के उपेर पड़ी थी इसलिए रूपाली सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगा सकती थी
के वो कैसा होगा. चाहकर भी वो धोती को लंड से हटाने से अपने आपको रोके हुए थी.
ठाकुर ने अब उसकी छातियों पे अपनी आर्म का दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया था. उनके हाथ
का पंजा रूपाली के क्लीवेज पे हाथ और नीचे वो अपनी कलाई से उसकी दोनो छातियों को
रगड़ रही थी.
रूपाली
ने ठाकुर के अपनी तरफ के हाथ को छ्चोड़कर दूसरे हाथ को उठाया. वो अब भी उसी साइड
बैठी हुई थी जिसकी वजह से उसे दूसरा हाथ अपनी तरफ लेना पड़ा. पहले हाथ की तरफ ये
हाथ उसके कंधे तक नही पहुँचा. ठाकुर ने उसके इशारे से पहले ही खुद डिसाइड कर लिया
के हाथ कहाँ रखा जाना चाहिए. उन्होने हाथ उठाकर सीधा रूपाली की दोनों चूचियों पे
रख दिया. रूपाली की साँस अटकने लगी. ये ठाकुर का अपने हाथ से उसकी चूची पे पहला
स्पर्श था. उसने इस बार ना तो पिछे होने की कोशिश की और ना ही हाथ हटाके कहीं और
रखने की कोशिश की. वो चुपचाप आर्म पे मालिश करने लगी और ठाकुर ने अब सीधे सीधे
उसकी दोनो चूचियों को दबाना शुरू कर दिया. दोनो की साँस तेज़ हो चली थी और दोनो की
ही आँखें बंद थी. ठाकुर ज़ोर ज़ोर से रूपाली की दोनो चूचियों को मसल रहे थे और वो
भी अब मालिश नही, उनके हाथ को सहला रही थी जो
उसे इतने मज़े दे रहा था. ठाकुर ने अपना दूसरा हाथ ले जाकर उसकी गांद पे रखा दिया
और सहलाने लगे.वो उसके दोनो कूल्हे अपने हाथ में पकड़ने की कोशिश करते पर रूपाली
की मोटी गांद का थोड़ा सा हिस्सा ही पकड़ पाते. अब दोनो के बीच पर्दे जैसे कुच्छ
नही रह गया था और जो हो रहा था वो सॉफ तौर पे हो रहा था पर फिर भी दोनो में से बोल
कोई कुच्छ नही रहा था. ठाकुर का हाथ अब सारी के उपेर से ही उसकी गांद के बीचो बीच
रेंग रहा था और धीरे से पिछे से होता उसकी चूत पे आ गया और इस बार रूपाली और
बर्दाश्त नही कर सकी. उसे लगा के अब अगर वो नही हटी तो ठाकुर को लगेगा के वो भी
चुदने के लिए बेताब है जो उसके प्लान का हिस्सा नही था.
"मैं
चलती हूँ पिताजी. मालिश हो गयी" कहकर रूपाली उठने लगी पर ठाकुर ने उसका एक
हाथ पकड़के फिर बिठा लिया.
रूपाली
ने ठाकुर की तरफ देखा तो वो आँखें खोल चुके थे. उसे सवालिया नज़रों से ठाकुर की
तरफ देखा जैसे पुच्छ रही हो के अब क्या और इससे पहले के कुच्छ समझ पाती, ठाकुर ने एक हाथ से अपनी खुली हुई धोती को एक
तरफ फेंक दिया और दूसरे हाथ से रूपाली का हाथ अपने लंड पे रख दिया जैसे कह रहे हों
के यहाँ की मालिश रह गयी.
रूपाली
ने हाथ हटाने की कोशिश की पर ठाकुर ने उसका हाथ मज़बूती से पकड़ रखा था. कुच्छ पल
दोनो यूँ ही रुके रहे और फिर धीरे से रूपाली ने अपना हाथ लंड पे उपेर की और किया.
ठाकुर इशारा समझ गये की रूपाली मान गयी है और उन्होने अपना हाथ हटा लिया. रूपाली
ने दूसरे हाथ से लंड पे थोड़ा तेल डाला और अपना हाथ उपेर नीचे करने लगी. ठाकुर के
लंड पे जैसे उसकी नज़र चिपक गयी थी. उसने अब तक देखे सिर्फ़ 2 लंड थे. अपने पति का और अब ठाकुर का. यूँ तो
उसने भूषण का लंड भी पकड़ा था पर उसे देखा नही थी. और भूषण का छ्होटा सा लंड तो ना
होने के बराबर ही था. वो दिल ही दिल में ठाकुर के लंड को अपने पति के लंड से
मिलाने लगी. ठाकुर का लंड लंबाई और चौड़ाई दोनो में उसके पति के लंड से दुगना था.
रूपाली के मुँह में जैसे पानी सा आने लगा और नीचे चूत भी पूरी तरह गीली हो गयी. अब
जैसे उसे खबर ही नही थी के वो क्या कर रही है. बस एकटूक लंड को देखते हुए अपना हाथ
ज़ोर ज़ोर से उपेर नीचे कर रही थी. थोड़ी देर बाद जब उसका हाथ थकने लगा तो उसने
अपना दूसरा हाथ भी लंड पे रख दिया और दोनो हाथों से लंड को हिलाने लगी जैसे कोई
खंबा घिस रही हो. ठाकुर को एक हाथ वापिस उसकी गांद पे जा चुका था और नीचे सारी के
उपेर से उसकी चूत को मसल रहा था. रूपाली दोनो हाथों से लंड पे मेहनत कर रही थी और
नीचे ठाकुर की अंगलियों उसकी चूत को जैसे कुरेद रही थी. रूपाली ने इस बार हटने की
कोई कोशिश नही की थी. चुपचाप बैठी हुई थी और चूत मसलवा रही थी. उसका ब्लाउस तेल से
भीग चुका था और उसके दोनो निपल्स सॉफ नज़र आ रहे थे पर उसे किसी बात की कोई परवाह
नही थी. उसे तो बस सामने खड़ा लंड नज़र आ रहा था. ठाकुर ने दूसरा हाथ उठाके उसकी
छाती पे रख दिया और उसकी बड़ी बड़ी छातियों को रगड़ने लगे. एक उंगली उसके क्लीवेज
से होती दोनो छातियों के बीच अंदर तक चली गयी. फिर उंगली बाहर आई और इस बार ठाकुर
ने पूरा हाथ नीचे से उसके ब्लाउस में घुसाकर उसकी नंगी छाती पे रख दिया. ठीक उसी
पल उन्होने अपने दूसरे हाथ की उंगलियों को रूपाली की चूत पे ज़ोरसे दबाया. रूपाली
के जिस्म में जैसे 100 वॉट
का कुरेंट दौड़ गया. वो ज़ोर से ठाकुर के हाथ पे बैठ गयी जैसे सारी फाड़ कर
उंगलियों को अंदर लेने की कोशिश कर रही हो. उसके मुँह से एक लंबी आआआआआअहह छूट
पड़ी और उसकी चूत से पानी बह चला.. अगले ही पल ठाकुर उठ बैठे, रूपाली को कमर से पकड़ा और बिस्तर पे पटक दिया.इससे पहले
के रूपाली कुच्छ समझ पाती, लंड उसके हाथ से छूट गया और
ठाकुर उसके उपेर चढ़ बैठे. उसकी पहले से ही घुटनो के उपेर हो रखी सारी को खींचकर
उसकी कमर के उपेर कर दिया. रूपाली आने से पहले ही ब्रा और पॅंटी उतारके आई थी
इसलिए सारी उपेर होते ही उसकी चूत उसके ससुर के सामने खुल गयी. रूपाली को कुच्छ
समझ में नही आ रहा था इसलिए उसकी तरफ से ठाकुर को कोई प्रतिरोध का सामना ना करना
पड़ा. वो अब अब तक ठाकुर के अपनी चूत पे दभी उंगलियों के मज़े से बाहर ही ना आ पाई
थी. जब तक रूपाली की कुच्छ समझ आया के क्या होने जा रहा है तब तक ठाकुर उसकी दोनो
टांगे खोलके घुटनो से मोड़ चुके थे. उसके दो पावं के पंजे ठाकुर के पेट पे रखे हुए
थे जिसकी वजह से उसकी चूत पूरी तरह से खुलके ठाकुर के सामने आ गयी थी. रूपाली
रोकने की कोशिश करने ही वाली थी के ठाकुर ने लंड उसकी चूत पे रखा और एक धक्का
मारा.
रूपाली
के मुँह से चीख निकल गयी. उसे लगा जैसे किसी ने उसके अंदर एक खूँटा थोक दिया हो.
एक तो वो 10 साल से चुदी नही थी और 10 साल बाद जो लंड अंदर गया वो हर तरह से उसके पति
के लंड से दोगुना था. उसकी चूत से दर्द की लहर उठकर सीधा उसके सर तक पहुँच गयी.
उसका पूरा जिस्म अकड़ गया और उसने अपने दोनो पावं इतनी ज़ोर से झटके के ठाकुर की
मज़बूत पकड़ में भी नही आए. उसने बदन मॉड्कर लंड चूत से निकालने की कोशिश की पर तब
तक ठाकुर उसके उपेर लेट चुके थे. रूपाली ने अपने दोनो नाख़ून ठाकुर की पीठ में
गाड़ दिए. कुच्छ दर्द की वजह से और कुच्छ गुस्से में और कुच्छ ऐसे जैसे बदला ले
रही हो. उसके दाँत ठाकुर के कंधे में गाडते चले गये. इसका नतीजा ये हुआ के ठाकुर
गुस्से में थोड़ा उपेर को हुए और उसके ब्लाउस को दोनो तरफ से पकड़के खींचा. खाट, खाट, खाट, ब्लाउस के सारे बटन खुलते चलये गये. ब्रा ना
होने के कारण रूपाली की दोनो चुचियाँ आज़ाद हो गयी. बड़ी बड़ी दोनो चूचियाँ देखते
ही ठाकुर उनपर टूट पड़े. एक चूची को अपने हाथ में पकड़ा और दूसरी का निपल अपने
मुँह में ले लिया. रूपाली के जिस्म में अब भी दर्द की लहरें उठ रही थी. तभी उसे
महसूस हुआ के ठाकुर अपना लंड बाहर खींच रहे हैं पर अगले ही पल दूसरा धक्का पड़ा और
इस बार रूपाली की आँखों के आगे तारे नाच गये. चूत पूरी फेल गयी और उसे लगा जैसे
उसके अंदर उसके पेट तक कुच्छ घुस गया हो. ठाकुर के अंडे उसकी गांद से आ लगे और उसे
एहसास हुआ के पहले सिर्फ़ आधा लंड गया था इस बार पूरा घुसा है. उसकी मुँह से ज़ोर
से चीख निकल गयी
"आआआआहह
पिताजी" रूपाली ने कसकर दोनो हाथों से ठाकुर को पकड़ लिया और उनसे लिपट सी
गयी जैसे दर्द भगाने की कोशिश कर रही हो.
उसका
पूरा बदन अकड़ चुका था. लग रहा था जैसे आज पहली बार चुद रही हो. बल्कि इतना दर्द
तो तब भी ना हुआ था जब पुरुषोत्तम ने उसे पहली बार चोदा था. उसके पति ने उसे आराम
से धीरे धीरे चोदा था और उसके ससुर ने तो बिना उसकी मर्ज़ी की परवाह के लंड जड़ तक
अंदर घुसा दिया था.. ठाकुर कुच्छ देर यूँही रुके रहे. दर्द की एक ल़हेर उसकी छाती
से उठी तो रूपाली को एहसास हुआ के दूसरा धक्का मारते हुए उसके ससुर ने उसकी एक
चूची पे दाँत गढ़ा दिए थे. ठाकुर ने अब धीरे धीरे धक्के मारने शुरू कर दिए थे. लंड
आधा बाहर निकालते और अगले ही पल पूरा अंदर घुसा देते. रूपाली के दर्द का दौर अब भी
ख़तम नही हुआ था. लंड बाहर को जाता तो उसे लगता जैसे उसके अंदर से सब कुच्छ लंड के
साथ साथ बाहर खींच जाएगा और अगले पल जब लंड अंदर तक घुसता तो जैसे उनकी आँखें बाहर
निकलने को हो जाती. उसकी पलकों से पानी की दो बूँदें निकलके उसके गाल पे आ चुकी
थी. उसकी घुटि घुटि आवाज़ में अब भी दर्द था जिससे बेख़बर ठाकुर उसे लगातार चोदे
जा रहे था. लंड वैसे ही उसकी चूत में अंदर बाहर हो रहा था बल्कि अब और तेज़ी के
साथ हो रहा था. ठाकुर के हाथ अब रूपाली की मोटी गांद पे था जिसे उन्होने हाथ से
थोड़ा सा उपेर उठा रखा था ताकि लंड पूरा अंदर तक घुस सके. वो उसके दोनो निपल्स पे
अब भी लगे हुए थे और बारी बारी दोनो चूस रहे थे. रूपाली की दोनो टाँगें हवा में थी
जिन्हें वो चाहकर भी नीचे नही कर पा रही थी क्यूंकी जैसे ही घुटने नीचे को मोडती
तो जांघों की नसे अकड़ने लगती जिससे बचने के लिए उसे टांगे फिर हवा में सीधी करनी
पड़ती. कमरे में बेड की आवाज़ ज़ोर ज़ोर से गूँज रही थी.रूपाली की गांद पे ठाकुर
के अंडे हर झटके के साथ आकर टकरा रहे थे. दोनो के जिस्म आपस में टकराने से ठप ठप
की आवाज़ उठ रही थी. ठाकुर के धक्को में अब तेज़ी आ गयी थी. अचानक एक ज़ोर का
धक्का रूपाली के चूत पे पड़ा,
लंड
अंदर तक पूरा घुसता चला गया और उसकी चूत में कुच्छ गरम पानी सा भरने लगा. उसे
एहसास हुआ के ठाकुर झाड़ चुके हैं. मज़ा तो उसे क्या आता बल्कि वो तो शुक्र मना
रही थी के काम ख़तम हो गया. ठाकुर अब उसके उपेर गिर गये थे. लंड अब भी चूत में था, हाथ अब भी रूपाली के गांद पे था और मुँह में एक
निपल लिए धीरे धीरे चूस रहे थे. रूपाली एक लंबी साँस छ्चोड़ी और अपनी गर्दन को
टेढ़ा किया. उसकी नज़र दरवाज़े पे पड़ी जो हल्का सा खुला हुआ था और जिसके बाहर
खड़ा भूषण सब कुच्छ देख रहा था.
रूपाली
यूँ ही कुच्छ देर तक कामिनी की डायरी के पेजस पलट कर देखती रही पर वहाँ से कुच्छ
हासिल नही हुआ. उसमें सिर्फ़ कुच्छ बड़े शायरों की लिखी हुई गाज़ल थी, कुच्छ ऐसी भी जो काई सिंगर्स ने गायी थी. जब
डायरी से कुच्छ हासिल नही हुआ तो परेशान होकर रूपाली ने कामिनी की अलमारी खोली पर
वहाँ भी सिवाय कपड़ो के कुच्छ ना मिला. रूपाली कामिनी के कमरे की हर चीज़ यहाँ से
वहाँ करती रही और जब कुच्छ ना मिला तो तक कर वहीं बैठ गयी.
उसे
कामिनी के कमरे में काफ़ी देर हो गयी थी.शाम ढलने लगी थी. रूपाली ने एक आखरी नज़र
कामिनी के कमरे में फिराई और उठकर बाहर निकलने ही वाली थी के उसकी नज़र कामिनी के
बिस्तर की तरफ गयी. चादर उठाकर बिस्तर के नीचे देखा तो हैरान रह गयी. नीचे एक अश्
ट्रे और कुच्छ सिगेरेत्टेस के पॅकेट रखे थे. कुच्छ जली हुई सिगेरेत्टेस भी पड़ी
हुई थी.
"कामिनी
और सिगेरेत्टेस?" रूपाली
सोचने पे मजबूर हो गयी क्यूंकी कामिनी ही घर में ऐसी थी जो अपने दूसरे भाई तेज को
सिगेरेत्टे छ्चोड़ने पे टोका करती थी. वो हर बार यही कहती थी के उसे सिगेरेत्टे
पीने वालो से सख़्त नफ़रत होती है तो फिर उसके कमरे में सिगेरेत्टेस क्या कर रही
है? या वो बाहर सिर्फ़ तमाशा
करती थी और अपने कमरे में चुप चाप बैठ कर सिगेरेत्टे पिया करती थी? पर अगर वो पीटी भी थी तो सिगेरेत्टे कहाँ से
लाती थी? गाओं में जाकर ख़रीदती तो
पूरा गाओं में हल्ला मच जाता?
रूपाली
हैरानी से सिगेरेत्टेस की और देखती रही. शायद रूपाली किसी और से ये सिगेरेत्टे
मँगवाती थी पर किससे? घर में कौन ऐसा था जो ये
ख़तरा उठा सकता था क्यूंकी अगर किसी को पता चल जाता तो कामिनी को तो कोई कुच्छ ना
कहता पर उस इंसान का गला ज़रूर कट जाता जो कामिनी को सिगेरेत्टेस लाके देता था.
रूपाली
फिर परेशान होकर कमरे में ही बैठ गयी. ये सच था के कामिनी हमेशा उसे परेशानी में
डाल देती थी. उसे देखकर ही रूपाली को लगता था के वो जो दिखती है वैसी है नही. लगता
था जैसे पता नही कितने राज़ उसने अपने दिल में दफ़न कर रखे थे. रूपाली ने जब भी
उससे बात करने की कोशिश की थी,
कामिनी
हर बार दूसरी तरफ मुँह घुमा लेती थी जैसे उससे नज़र मिलाने से घबरा रही हो. अचानक
रूपाली को कुच्छ ध्यान आया और उसे एक सवाल का जवाब मिल गया. घर में उसके देवर तेज
के अलावा सिगेरेत्टे सिर्फ़ भूषण पिया करता था. बाद में डॉक्टर के मना करने पे
छ्चोड़ दी थी पर जब कामिनी यहाँ थी तो वो सिगेरेत्टे रखा करता था अपने पास. और वही
एक ऐसा था जो एक बार ठाकुर के गुस्से का सामना कर सकता था क्यूंकी वो इस घर के
सबसे पुराना नौकर था. रूपाली ने सोच लिया के वो भूषण से इस बारे में बात करेगी.
सिगेरेत्टेस
वापिस बिस्तर के नीचे सरका कर रूपाली उठी और कामिनी की डायरी उठाकर कमरे से बाहर
निकली. कमरे पे फिर से उसने लॉक लगाया और डायरी पढ़ती हुई नीचे की और चल दी. डायरी
में हर शायरी ऐसी थी जिसे पढ़कर सिर्फ़ लिखने वाले के दर्द का अंदाज़ा लगाया जा
सकता था. हर शायरी में मौत का ज़िक्र था. हर पेज में लिखने वाले ने अपनी मर जाने
की ख्वाहिश का ज़िक्र किया था. डायरी पढ़ती हुई रूपाली अपने कमरे में पहुँची और
डायरी को सामने रखी टेबल की तरफ उच्छाल दिया. डायरी थोड़ी सी खुली और एक पेज उसमें
से निकल कर बाहर गिर पड़ा. रूपाली ने झुक कर काग़ज़ का वो टुकड़ा उठाया और पढ़ने
लगी
तूने
मयखाना निगाहों में च्छूपा रखा है
होशवालो
को भी दीवाना बना रखा है
नाज़
कैसे ना करूँ बंदा नवाज़ी पे तेरी
मुझसे
नाचीज़ को जब अपना बना रखा है
हर
कदम सजदे बशौक किया करता हूँ
मैने
काबा तेरे कूचे में बना रखा है
जो भी
गम मिलता है सीने से लगा लेता हूँ
मैने
हर दर्द को तक़दीर बना रखा है
बख़्श
कर आपने एहसास की दौलत मुझको
ये भी
क्या कम है के इंसान बना रखा है
आए
मेरे परदा नशीन तेरी तवज्जो के निसार
मैने
इश्क़ तेरा दुनिया से च्छूपा रखा है
काग़ज़
के टुकड़े पे लिखी ग़ज़ल को पढ़कर रूपाली ने जल्दी से कामिनी की डायरी खोली और
पेजस पलटने लगी. कुच्छ बातों पे फ़ौरन उसका ध्यान गया. पहली तो ये के ये काग़ज़ इस
डायरी का हिस्सा नही था. सिर्फ़ डायरी के अंदर कुच्छ इस अंदाज़ से रखा गया था के
डायरी उठाने पर बाहर निकलकर ना गिरे. कामिनी की डायरी इंपोर्टेड थी जो उसके सबसे
छ्होटे भाई ने विदेश से भेजी थी इसलिए पेपर्स की क्वालिटी काफ़ी अच्छी थी जबकि जो
काग़ज़ उसमें रखा गया था वो एक सादा पेपर था जो किसी स्कूल के बच्चे की नोटबुक से
फाडा हुआ लगता था. ऐसी नोटबुक जो गाओं में कहीं भी आसानी से मिल सकती थी. दूसरी और
सबसे ज़रूरी चीज़ ये थी के ये लाइन्स कामिनी ने नही लिखी थी. हॅंडराइटिंग बिल्कुल
अलग थी. रूपाली की हॅंडराइटिंग बहुत सॉफ थी और काग़ज़ पे लिखी हुई लाइन्स को देखके
तो लगता था जैसे किसी ने काग़ज़ पे कीड़े मार दिए हों. तीसरी बात ये थी की कामिनी
की डायरी में लिखी हुई सब लाइन्स एक लड़की की तरफ से कही गयी शायरी थी और काग़ज़
पे लिखी हुई ग़ज़ल एक लड़के की तरफ से कही गयी थी. चौथी बात ये के डायरी में
कामिनी ने जो भी लिखा था सब इंग्लीश में था. लाइन्स तो सब उर्दू या हिन्दी में थी
पर स्क्रिप्ट इंग्लीश उसे की थी. रूपाली जानती थी के कामिनी हिन्दी अच्छी तरह से
लिख नही सकती थी इसलिए स्क्रिप्ट वो हमेशा इंग्लीश ही उसे करती थी पर काग़ज़ में
स्क्रिप्ट भी हिन्दी ही थी.
रूपाली
फिर सोच में पड़ गयी. क्या सच में कामिनी का कोई प्रेमी था? शायरी को पढ़कर तो यही लगता था के वो जो कोई भी
था, कामिनी को बहुत चाहता था पर
इश्क़ मजबूरी ज़ाहिर नही कर सकता था. रूपाली का सर जैसे दर्द की वजह से फटने लगा.
वो उठी और डायरी को उठाकर अपनी अलमारी में रख दिया.
खिड़की
पे नज़र पड़ी तो बाहर अंधेरा हो चुका था. वो जानती थी के आज रात वो अपने कमरे में
नही सोने वाली है. आज की रात तो उसने ठाकुर के कमरे में सोना है, उनकी बीवी की तरह. रात भर अपने ससुर से चुदवा
है. यही सोचते हुए वो शीसे के सामने पहुँची और मुस्कुराते हुए जैसे एक नयी दुल्हन
की तरह सजकर तैय्यार होने लगी. उसने सोच लिया था के बिस्तर पे ठाकुर से बात करेगी
और हवेली के बारे में वो सब मालूम करेगी जो वो जानती नही. जो उसके इस घर में आने
से पहले हुआ था.
त्य्यार
होकर रूपाली बाहर आई तो भूषण किचन में था.
"पिताजी
जाग गये?" रूपाली
ने भूषण से पुचछा
"नही
अभी सो ही रहे हैं. मैं जगा दूं?"
भूषण
ने जवाब दिया
"नही
मैं ही उठा देती हूँ. आप खाना लगाने की तैय्यार कीजिए" कहते हुए रूपाली किचन
से बाहर जाने लगी पर फिर रुक गयी और भूषण की तरफ पलटी
"काका
आप सिगेरेत्टे पीते हैं क्या"
भूषण
हैरानी से रूपाली की और देखने लगा
"नही
अब नही पीता. पहले पीता था पर फिर डॉक्टर ने मना किया तो छ्चोड़ दी. क्यूँ?" उसे रूपाली के बात का जवाब देते हुए पुचछा
"नही
ऐसे ही पुच्छ रही थी. घर में और कोई भी सिगेरेत्टे पीता था? मेरे यहाँ आने से पहले?" रूपाली फिर भूषण के पास वापिस आकर खड़ी हो गयी
"सिर्फ़
एक छ्होटे ठाकुर पीते हैं. आपके देवर तेज सिंग" भूषण ने जवाब दिया
"पहले
तो घर में इतने नौकर होते थे. कोई नौकर वगेरह?" रूपाली ने फिर पुचछा
"नही
बेटी. नौकरों की कहाँ इतनी हिम्मत के हवेली में सिगेरेत्टे या बीड़ी पिएं. अपनी
नौकरी सबको प्यारी होती है" भूषण बोला
"पर आप
तो पीते थे ना काका. आपको नौकरी प्यारी नही थी?" रूपाली ने सीधे भूषण की आँखों में देखते हुए कहा
भूषण
से इस बात का जवाब देते ना बना.
"चलिए
छ्चोड़िए. एक बात और बताइए. इस हवेली में आपने आज तक सबसे अजीब क्या देखा है जो आज
तक आपकी समझ में नही आया और जिस बात ने आज तक आपको परेशान किया है" रूपाली ने
पुचछा
भूषण
परेशान होकर इधर उधर देखने लगा. उससे रूपाली के इस सवाल का जवाब भी नही दिया जा
रहा था. रूपाली समझ गयी के वो परेशान क्यूँ है और बोल क्यूँ नही रहा. उसका इशारा
खुद रूपाली की हरकतों की तरफ था.
"नही
काका. जो मैं कर रही हूँ उसके अलावा" रूपाली ने कहा
भूषण
ने एक लंबी साँस छ्चोड़ी और वहीं किचन में दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया
"देखो
बेटी. कभी कभी ये ज़रूरी हो जाता है के जो गुज़र चुका है उसे गुज़रने दिया जाए.
पुरानी बातों को जानकार क्या करोगी. क्यूँ अचानक गढ़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर
रही हो तुम?" उसे
रूपाली से कहा
"आप
मेरी बात का जवाब दीजिए काका. जिन गढ़े मुर्दों की आप बात कर रहे हैं उनमें एक
मेरा पति भी है" रूपाली की आवाज़ ठंडी हो चली थी
भूषण
ने जब देखा के वो नही मानेगी तो उसने हथ्यार डाल दिए
"ठीक
है तो सुनो. मैने इस हवेली में अपनी पूरी ज़िंदगी गुज़ार दी. यहाँ जो होता था एक
तरीके से होता था. बड़े ठाकुर की मर्ज़ी से होता था. उनके गुस्से के सामने कोई
मुँह नही खोलता था और ना ही किसी की हिम्मत होती थी के उनकी मर्ज़ी के खिलाफ कुच्छ
कर सके. पर एक किस्सा ऐसा है जो आज तक मुझे समझ नही आया."
"क्या
काका" रूपाली ने कहा
"तुमने
हवेली के पिछे वाला हिस्सा देखा है? जहाँ
अब पूरा बबूल की झाड़ियों का जंगल उग चुका है?" भूषण ने पुचछा
"हां
देखा है. क्यूँ?" रूपाली
अब गौर से सुन रही थी
"कभी
उस जगह पे फूलों का एक बगीचा होता था. ठाकुर साहब को फूल बहुत पसंद थे. जब तुम आई
थी तब भी तो था. याद है?" भूषण
ने 10 साल पहले की बात की तरफ
इशारा किया
रूपाली
ने दिमाग़ पे ज़ोर डाला तो ध्यान आया के भूषण सच कह रहा था. वहाँ एक बगीचा हुआ
करता था. बहुत खूबसूरत. वो खुद भी अक्सर वहाँ जाकर बैठा करती थी अकेले. उसके पति
के मरने के बाद किसी ने हवेली के उस हिस्से की तरफ ध्यान नही दिया और बगीचा सूख कर
झाड़ियों में तब्दील हो गया.
"हां
याद है." रूपाली ने कहा
"उस
बगीचे में कयि फूल ऐसे थे जो विदेश से मँगवाए गये थे. उनको पानी की ज़रूरत ज़्यादा
होती थी. हर 2 घंटे में पानी डालना होता था
तो मैं अक्सर रात को उठकर उस तरफ जाया करता था पानी डालने के लिए." कहकर भूषण
चुप हो गया जैसे आगे की बात कहना ना चाह रहा हो
"आगे
बोलिए काका" रूपाली ने कहा
भूषण
रुक रुक कर फिर बोला, जैसे शब्द ढूँढ रहा हो
"हवेली
में रात को कोई आया करता था बेटी. उस बगीचे में मैने कई बार महसूस किया के जैसे
मैने एक साया देखा हो जो मेरा आने पे च्छूप गया. मैने काई बार कोशिश की पर मिला
नही कोई पर मुझे महसूस होता रहता था के जो कोई भी है, वो मुझे च्छूप कर देख रहा है. मेरे वापिस जाने
का इंतेज़ार कर रहा है"
भूषण
बोलकर चुप हो गया और रूपाली एक पल के लिए उसके चेहरे को देखती रही. थोड़ी देर
खामोश रहने के बाद वो बोली
"मैं
कुच्छ समझी नही काका"
"हवेली
में रात को कोई चुपके से दाखिल होता था. मैं नही जानता के वो कौन था और क्या करने
आता था पर फूलों के बगीचे के आस पास ही मुझे ऐसा लगता था के कोई मेरे अलावा भी
मौजूद है वहाँ" भूषण ने कहा
"पर
कोई हवेली में कैसे आ सकता था?
बाहर
दरवाज़े पे उन दीनो 3 गार्ड्स होते थे, घर के कुत्ते खुले होते थे और हवेली के चारो
तरफ ऊँची दीवार है जिसे चढ़ा नही जा सकता" रूपाली एक साँस में बोल गयी
"मैं
नही जनता बेटी के वो कैसे आता था पर आता ज़रूर था. शायद हर रात" भूषण की
आवाज़ में यकीन सॉफ झलक रहा था
"आप
इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं काका? अभी तो
आपने कहा के आपको बस ऐसा महसूस होता था. आपका भरम भी तो हो सकता है. इतने यकीन
क्यूँ है आपको?" रूपाली
ने पुचछा तो भूषण ने जवाब नही दिया. रूपाली ने उसकी आँखों में देखा तो अगले ही पल
अपने सवाल का जवाब आप मिल गया
"आपने
देखा था उसे है ना काका? कौन था?" रूपाली ने कहा. अचानक उसकी आवाज़ तेज़ हो चली
थी. उतावलापन आवाज़ में भर गया था.
"मैं
ये नही जनता के वो कौन था बेटी" भूषण ने अपनी बात फिर दोहराई"और ना ही
मैने उसे देखा था. मुझे बस उसकी भागती हुई एक झलक मिली थी वो भी पिछे से"
"मैं
सुन रही हूं" कहकर रूपाली खामोश हो गयी
"उस
रात मैने अपने दिल में ठान रखी थी की इस खेल को ख़तम करके रहूँगा. मैं अपने कमरे
में आने के बजाय शाम को ही बगीचे की तरफ चला गया और वहीं च्छूप कर बैठ गया. जाने
कब तक मैं यूँ ही बैठा रहा और फिर मुझे धीरे से आहट महसूस हुई. मुझे लगा के आज मैं
राज़ से परदा हटा दूँगा पर तभी कुच्छ ऐसा हुआ के मेरा सारा खेल बिगड़ गया"
"क्या
हुआ?" रूपाली
ने पुचछा
"उपेर
हवेली के एक कमरे में अचानक किसी ने लाइट ऑन कर दी. मैं हिफ़ाज़त के लिए अपने साथ
एक कुत्ते को लिए बैठा था. लाइट ऑन होते ही उस कुत्ते ने भौकना शुरू कर दिया और शायद
वो इंसान समझ गया के उसके अलावा भी यहाँ कोई और है. मैं फ़ौरन अपने च्चिपने की जगह
से बाहर आया और उस शक्श को भागकर अंधेरे हिस्से की तरफ जाते देखा. बस पिछे से
हल्की सी एक झलक मिली जो मेरे साथ खड़े कुत्ते ने भी देख ली. कुत्ता उस साए के
पिछे भागा और कुत्ते के पिछे पिछे मैं भी" भूषण ने कहा
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"पर वो
साया तो जैसे हवा हो गया था. ना मुझे उसका कोई निशान मिला और ना ही कुत्ते को. मैं
3 घंटे तक पूरी हवेली के आस
पास चक्कर लगाता रहा पर कहीं कोई निशान नही मिला. हवेली और दीवार के बीच में काफ़ी
फासला है. अब तो जैसे पूरा जंगल उग गया है पर उस वक़्त सॉफ सुथरा हुआ करता था फिर
भी ना तो मैं कुच्छ ढूँढ सका और ना ही मेरे साथ के कुत्ते"
भूषण
बोलकर चुप हो गया तो रूपाली भी थोड़ी देर तक नही बोली. आख़िर में भूषण ने ही बात
आगे बढ़ाई.
इसके
बाद एक हफ्ते तक मैने एक दो बार और कोशिश की पर शायद उस आदमी को भी पता लग गया था
के उसका आना अब च्छूपा नही है इसलिए उसके बाद वो नही आया. और उसके ठीक एक हफ्ते
बाद आपके पति पुरुषोत्तम की हत्या कर दी गयी थी. फिर क्या हुआ ये तो आप जानती ही
हो"
रूपाली
ये सुनकर हैरत से भूषण की और देखने लगी
"कितने
वक़्त तक चला ये किस्सा? मेरा मतलब काब्से आपको ऐसा
लगता था के कोई है जो आता जाता है रात को?" रूपाली ने पुचछा
"आपके
पति के मरने से एक साल पहले से. एक साल तक तकरीबन हर रात यही किस्सा दोहराया जाता
था" भूषण अलमारी से प्लेट्स निकालते हुए बोला
"आपने
किसी से कहा क्यूँ नही काका?"
रूपाली
उसकी कोई मदद नही कर रही थी. वो तो बस खड़ी हुई आँखें फाडे भूषण की बातें सुन रही
थी
"मैं
क्या कहता बेटी? सब कहते के मेरा भरम है और
मज़ाक उड़ाते. आखरी हवेली में रात को घुसने की हिम्मत कर भी कौन सकता था वो भी
गार्ड्स और कुत्तो के रहते" भूषण प्लेट्स कपड़े से सॉफ करने लगा
"पर
मेरे पति के मरने के बाद तो कह सकते थे. आप जानते हैं के आपने क्या च्छूपा रखा था? हो सकता है मेरे पति की जान उसी आदमी ने ली
हो"रूपाली लगभग चीख पड़ी
"मैं
अपना मुँह कैसे खोल सकता था बेटी?"
भूषण
ने नज़र झुका ली " मैं तो एक मामूली नौकर था. किसी से क्या कहता के मैने क्या
देखा है जबकि ....... " भूषण ने बात अधूरी छ्चोड़ दी.
"जबकि
क्या?" रूपाली
से भूषण की खामोशी बर्दाश्त नही हो रही थी.
जब
भूषण ने जवाब नही दिया तो रूपाली ने फिर वही सवाल दोहराया
"उस
रात ये सब मैने अकेले नही देखा था. कोई और भी था जो ये सब देख रहा था" भूषण
अटकते हुए बोला
"कौन?" रूपाली ने पुचछा
"आपकी
सास" भूषण ने नज़र उठाकर कहा " घर की मालकिन श्रीमती सरिता देवी"
रूपाली
का मुँह फिर खुला रह गया . भूषण उसकी मर चुकी सास की बात कर रहा था
"क्या
कह रहे हो काका?" उसे
भूषण से कहा
"सही
कह रहा हूँ बेटी. उस रात उनके कमरे की ही लाइट ऑन हुई थी जिसे देखकर कुत्ता भौंका
था. जब वो शख्स भागा तो मैने एक नज़र उपेर कमरे की तरफ उठाई तो देखा के मालकिन
खिड़की पर खड़ी थी. पता नही वो क्या देख रही थी पर उनकी नज़र मेरी तरफ नही थी. मैं
उस आदमी के पिछे भगा और थोड़ी देर बाद जब नज़र उठाकर देखा तो कमरे की खिड़की बंद
हो चुकी थी और लाइट ऑफ कर दी गयी थी"
रूपाली
की समझ नही आया के वो क्या करे और क्या कहे. उसके दिमाग़ में काफ़ी सारी बातें एक
साथ चल रही थी.
"भागते
हुए वो आदमी कुच्छ गिरा गया था जो एक कुत्ता सूंघटा सूंघटा उठा लाया था" भूषण
ने कहा
"क्या?" रूपाली ने अपनी खामोशी तोड़ी
"एक
चाबी" भूषण ने जवाब दिया
"चाबी?" रूपाली ने फिर हैरत से पुचछा
"हां.
वो आज भी मेरे ही पास है"
भूषण
के बात सुनकर रूपाली दीवार के साथ टेक लगाकर खड़ी हो गयी.
"आपको
कैसे पता के ये चाबी उसी आदमी ने गिराई थी?" उसने भूषण से पुचछा
"यकीन
से तो नही कह सकता पर वो चाबी वही कुत्ता उठाके लाया था जो उस आदमी के पिछे भगा
था. कुत्ता ऐसी किसी चीज़ को उठाके क्यूँ लाएगा? सिर्फ़
इसलिए क्यूंकी उस चाबी में उस आदमी की खुश्बू थी जिसके पिछे कुत्ता भाग रहा
था"
"वो
चाबी कहाँ है काका?" रूपाली
ने कहा
"मेरे
कमरे में है" बात करते करते भूषण खाना लगाने की पूरी तैय्यारि कर चुका था
"काका
आपको ये सब बातें ससुर जी से अगले ही दिन बता देनी चाहिए थी. शायद मेरे पति की जान
बच जाती" रूपाली की आवाज़ भारी हो चली थी
"चाहता
तो मैं भी यही था बेटी" भूषण उसके करीब आता हुआ बोला"मैं तो अपने दिल
में इरादा कर भी चुका था. मैने सोचा के बड़ी मालकिन अगले दिन इस बात का ज़िक्र तो
करेंगी ही पर उन्होने किसी से कुच्छ नही कहा. ना तो इस बात का कोई ज़िक्र किया और
ना ही कुच्छ ऐसा किया जिससे किसी को लगता के वो कुच्छ च्छूपा रही हैं. मैं उनकी
इसी बात से परेशानी में पड़ गया. समझ नही आया के किसी से कहूँ या ना कहूँ और कहूँ
तो क्या कहूँ और इससे पहले की मैं कोई फ़ैसला कर पता तब तक बहुत देर हो चुकी
थी."
रूपाली
की आँख भर आई थी. उसे भूषण पे गुस्सा भी आ रहा था और दिल से एक आवाज़ ये भी आ रही
थी के इसमें इस बेचारे बुड्ढे आदमी का क्या कसूर. अचानक उसके ससुर ने उसका नाम
पुकारा तो उसने जल्दी से अपने आँसू पोन्छे.
"आई
पिताजी" उसने ऊँची आवाज़ में जवाब दिया और भूषण की और पलटके बोली " आअप खाना
निकालो."
जाते
जाते रूपाली फिर भूषण की और पलटी.
"क्या
पिताजी को इस बात की खबर है?"
उसने
पुचछा
भूषण
ने इनकार में सर हिला दिया
"होनी
भी नही चाहिए" कहते हुए रूपाली चली गयी.
तेज़
कदमो से चलती वो ठाकुर के कमरे तक पहुँची. ठाकुर उठकर खड़े हुए थे
"अरे
पिताजी क्या कर रहे हैं" वो भागती हुई ठाकुर के करीब पहुँची "आप लेट
जाइए वरना दर्द बढ़ जाएगा पावं में"
"नही
अब काफ़ी ठीक लग रहा है. लगता है मामूली मोच थी" ठाकुर ने एक कदम आगे बढ़ने
की कोशिश की तो आगे की और गिरने लगे. रूपाली ने भागकर सहारा दिया
"मामूली
नही थी. अब आअप लेट जाइए" रूपाली ने हस्ते हुए कहा
ठाकुर
का एक हाथ रूपाली के कंधे पे था और दूसरा हाथ आधा उसकी कमर पर और आधा उसकी गांद
पर.
रूपाली
ने सहारा देकर ठाकुर को फिर लेटा दिया और अपनी सारी का पल्लू ठीक करते हुए बोली
"आप
यहीं लेट जाइए. मैं खाना यहीं लगा देती हूं. आपको उठने की ज़रूरत नही"
कमरे
से बाहर आकर वो किचन की तरफ आई. भूषण टेबल पे खाना लगा रहा था
"टेबल
पे नही. पिताजी आज अपने कमरे में ही खाएँगे." रूपाली ने उसकी और आते हुए कहा
उसकी
बात सुनकर भूषण प्लेट्स फिर उठाने लगा, ठाकुर
के कमरे में ले जाने के लिए
"आप
रहने दीजिए."रूपाली ने उसे रोकते हुए कहा"मैं कर लूँगी. आप अपने में
जाके आराम कीजिए. कल सुबह मिलेंगे"
रूपाली
ने उसकी आँखों में देखते हुए प्लेट्स उसके हाथ से ले ली. भूषण हैरत से उसकी तरफ
देख रहा था. अब तक रूपाली और उसके बीच उस रात के बारे में कोई ज़िक्र नही हुआ था
जब ठाकुर ने रूपाली को चोदा था. वो दोनो जानते थे के दोनो ने उस रात एक दूसरे को
देख लिया था और शायद इसी वजह से उस बारे में बात करने से क़तरा रहे थे. भूषण पलटकर
जाने लगा तो रूपाली ने उसे पिछे से कहा
"अब
रात को हवेली में आपकी ज़रूरत नही होगी काका. आप आराम कर लीजिएगा. पिताजी का ख्याल
मैं रख लूँगी, हर रात"
रूपाली
की बात सुनकर भूषण फिर पलटकर उसे देखने लगा. रूपाली ने जैसी उसकी आँखें पढ़ ली.
"आप
ठीक सोच रहे हैं काका. ठीक उसी रात की तरह जब आपने मुझे पिताजी के बिस्तर पे देखा
था. बस ध्यान रहे के उस रात आपने जो किया वो फिर ना करें."
भूषण
के जाने के बाद रूपाली ने ठाकुर को खाना खिलाया और खुद ही किचन सॉफ किया. सारे काम
जब तक उसने निपटाए तब तक बाहर रात गहरा चुकी थी. गर्मी पुर जोश पे थी. रूपाली को
हल्का हल्का सा पसीना भी आ रहा था. किचन बंद कर वो सारी के पल्लू से अपना सर
पोन्छ्ते ठाकुर के कमरे में पहुँची.
"तुम
क्यूँ काम कर रही हो?" उसे
देखकर ठाकुर ने पुचछा
"अपने
घर में मैं नही तो और कौन काम करेगा पिताजी?" रूपाली हस्ते हुए बोली और ठाकुर के पास आकर उनके पावं को
देखने लगी
"अब
बेहतर लग रहा है सुबह से." रूपाली ने अपने ससुर से कहा " आप आराम कीजिए.
मैं थोड़ा नहा लूँ"
रूपाली
जाने ही लगी थी के ठाकुर ने उसका एक हाथ पकड़ा और खींच कर बिस्तर पे गिरा दिया.
"क्या
कर रहे हैं? नहा तो लेने दीजिए. जल्दी
क्या है?" रूपाली
ने एक ही बात में अपने ससुर के सामने सॉफ ज़ाहिर कर दिया के आज रात उसे कोई एतराज़
नही.
बदले
में ठाकुर ने कुच्छ नही कहा और सिर्फ़ उसकी आँखों में खामोशी से देखते रहे.उन्होने
रूपाली को खींच कर पूरी तरह से बिस्तर पे लिटा लिया था और अपने करीब कर लिया था.
कमरे में एसी ऑन था इसलिए रूपाली के बदन से पसीना सूखने लगा था.
"मुझे
पसीना आ रहा है. एक बार नाहकार आ जाऊं?" रूपाली ने अपने माथे पे आखरी बची कुच्छ पसीने की बूँदों की
तरफ इशारा किया.
हर
बार की तरह इस बार भी ठाकुर ने कुच्छ नही कहा और बस प्यार से उसके सर पे हाथ फिरते
रहे. फिर हाथ माथे पे लाए और पसीना सॉफ कर दिया. रूपाली ने महसूस किया था के
बिस्तर पर ठाकुर कुच्छ बोलते नही थे. बस चुप चाप सारे काम करते रहते थे.
दोनो
करवट लिए एक दूसरे की तरफ चेहरा किए लेटे हुए था. नज़र अब भी एक दूसरे की नज़र से
मिली हुई थी. बस एक दूसरे को देखे जा रहे थे. ठाकुर का एक हाथ धीरे धीरे रूपाली का
सर सहला रहा था. नीचे टांगे एक दूसरे से मिल रही थी. रूपाली की सारी थोड़ी सी उठकर
उपेर घुटनो तक आ पहुँची थी. धीरे धीरे ठाकुर ने उसके चेहरे को सहलाना शुरू किया और
एक उंगली उसके होंठ पर फिराई तो रूपाली की साँस अटकने लगी. अगले ही पल ठाकुर ने
आगे बढ़कर अपने होंठ रूपाली के होंठो पर रख दिया
रूपाली
के मुँह से आह निकल पड़ी और दोनो के होंठ एक दूसरे से मिल गये. ठाकुर ने उसके
होंठो का रस चूसना शुरू किया तो रूपाली भी जवाब देने लगी. दोनो एक होंठ जैसे एक
दूसरे में घुसे जा रहे थे और ज़ुबान आपस में टकराने लगी थी. रूपाली आगे को खिसक कर
अपने ससुर से चिपक गयी थी और चुंबन में उनका पूरा साथ दे रही थी. बड़ी देर तक दोनो
एक दूसरे के होंठ चूस्ते रहे. रूपाली ने अपने दोनो हाथों से ठाकुर का सर पकड़ रखा
था और अपने ससुर के अंदर जैसे घुसी जा रही थी. ठाकुर का एक हाथ पिछे से उसकी सारी
के अंदर ब्लाउस के नीचे उसकी नंगी कमर को सहला रहा था जिससे रूपाली के जिस्म की
गर्मी और बढ़ती जा रही थी.
चुंबन
चलता रहा और ठाकुर का हाथ सरक कर पिछे से रूपाली के ब्लाउस के अंदर चला गया. और
उसकी नंगी कमर को सहलाने लगा. रूपाली जैसे हवा में उड़ रही थी. उसकी आँखें बंद हो
चली थी. वो तो बस अपने ससुर के होंठ और अपने नंगे जिस्म पे उनके हाथ का मज़ा ले
रही थी. ठाकुर का हाथ थोड़ी देर बाद सरक कर आगे आया और सारी के उपेर से रूपाली की
छातियों के उपेर आ गया. रूपाली से रहा ना गया और जैसे ही ठाकुर ने हाथ का दबाव
उसकी छातियों पे डाला वो सूखे पत्ते की तरह काँप उठी. ठाकुर धीरे धीरे सारी और
ब्लाउस के उपेर से उसकी दोनो चुचियों को दबाने लगे. दोनो एक दूसरे से बुरी तरह
चिपक गये थे और ठाकुर का खड़ा लंड रूपाली को अपने पेट पे महसूस हो रहा था. वो भी
धीरे से आगे सारा कर अपने पेट से लंड को घिस रही थी.
ठाकुर
ने हाथ रूपाली की छाती से हटाकर एक हाथ से उसका हाथ पकड़ा और अपने लंड की तरफ
खींचने लगे. शरम से रूपाली ने अपना हाथ वापिस लेना चाहा पर ठाकुर ने हाथ फिर भी
खींचकर अपने लंड पे रख दिया. धोती के उपेर से लंड हाथ में आते ही रूपाली के हाथ
वापिस लेना बंद कर दिया और लंड हाथ में पकड़ लिया. ठाकुर ने अब उसके पुर चेहरे को
चूमना शुरू कर दिया और उसके गले तक आ पहुँचे थे. रूपाली को अब किसी बात की परवाह
नही थी. उसे तो बस अब चुद जाना था. वो भी उतने ही जोश के साथ अपने ससुर का साथ दे
रही थी. धीरे से ठाकुर ने उसे अपने नीचे लिया और उसके उपेर चढ़ गये. होंठ फिर
रूपाली के होंठो पे आ गये, हाथ से उसकी कमर पकड़ी और
लंड का दबाव सारी के उपेर से सीधा उसकी चूत पे डाला. रूपाली ने कुच्छ जोश में और
कुच्छ शरम से अपनी टांगे बंद करने की कोशिश की पर ठाकुर ने अपने घुटनो से उसकी
दोनो टांगे फेला दी और लंड धीरे धीरे उसकी चूत पे बड़ाने लगे.
रूपाली
अब ज़ोर ज़ोर से आहें भर रही थी. एसी में भी पसीना दोबारा उसके माथे पे आ गया था.
ठाकुर उसे पागलों की तरह चूम रहे थे और नीचे से सारी के उपेर से ही उसकी चूत पे
धक्के मार रहे थे. हाथ उसके नंगे पेट पे घूम रहा था. थोड़ी देर बाद वो उठ कर सीधे
हुए, अपना कुर्ता निकाला और फिर
रूपाली के उपेर लेट गये. चुंबन फिर शुरू हो गया पर इस बार हाथ सीधा रूपाली की
चूचियों पे आ गये थे. थोड़ी देर ऐसे ही चूचियाँ दबाने के बाद उन्होने उसकी सारी का
पल्लू हटाया और उसके ब्लाउस के बटन्स खोलने लगे. रूपाली को फिर शरम महसूस हुई. वो
अपनी दोनो चूचियाँ ठाकुर को पहले भी दिखा चुकी थी, दबवा
चुकी थी पर फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे पहली बार कर रही हो. वो कुच्छ समझ पाती उससे
पहले ही उसका ब्लाउस खुल चुका था और दोनो चूचियाँ सफेद ब्रा में बंद ठाकुर के सामने
थी. ठाकुर ने अपने होंठ उसके क्लीवेज पर रख दिए और नीचे से ब्रा उपेर को उठाने
लगे. रूपाली ने रोकने की कोशिश की जो किसी काम ना आई और उसका ब्रा उपेर कर दिया
गया. दोनो चूचियाँ छलक कर ठाकुर के सामने थी.
ठाकुर
ने उसकी दोनो चूचियों को अपने हाथों में थामा और दबाते हुए नीचे झुक कर चूसने लगे.
एक एक करके रूपाली के दोनो निपल ठाकुर के मुँह में जाने लगे. हाथ से दबाने का काम
अब भी चल रहा था और नीचे से सारी के उपेर से ही चूत पे धक्के पड़ रहे थे. रूपाली
अपने आपे से बिल्कुल बाहर जा चुकी थी. उसे अब कोई परवाह नही थी के उसपर चढ़ा हुआ
मर्द उसका अपना ससुर था. उसे तो बस अब एक लंड की ज़रूरत थी.
उसने
महसूस किया के ठाकुर उसके उपेर से उतर कर थोड़ा एक तरफ को हो गये. लंड चूत से हट
गया तो रूपाली एक ठंडी आह भर कर रह गयी. चूचियाँ अब भी ठाकुर के हाथों में थी.
उसने आँखें बंद किए कुच्छ समझने की कोशिश की के क्या हो रहा है और जल्दी ही पता चल
गया. ठाकुर का एक हाथ अब उसके पेट से होके सारी के उपेर से उसकी चूत पे आ गया था
और धीरे से उसकी टाँगो के बीच घुस गया था. रूपाली तड़प उठी और उसने फ़ौरन अपने
टांगे बंद करके ठाकुर के हाथ को हटाने की कोशिश की पर फिर नाकाम रही. हाथ वहीं रहा
और उसकी चूत को घिसता रहा. थोड़ी देर बाद उसे ठाकुर का हाथ अपनी चूत से हटकर फिर
अपने पेट पे आता हुआ महसूस हुआ और अगले ही पल उसकी सारी सामने की तरफ से बाहर खींच
दी गयी.
रूपाली
के पुर जिस्म ने एक झटका लिए और उसने दोनो हाथों से अपनी सारी से अपना जिस्म ढकने
की कोशिश की. ठाकुर ने उसके दोनो हाथों को अपने एक हाथ से पकड़ा और उसके सर के
उपेर ले जाकर पकड़ लिया. रूपाली ने लाख कोशिश की पर अपने हाथ च्छुडा नही पाई. दिल
ही दिल में वो ठाकुर की ताक़त की क़ायल हो गयी. इस उमर में भी सिर्फ़ एक हाथ से
उन्होने उसे काबू कर लिया. वो सोच ही रही थी के उसे अपने पेटीकोट का नाडा खुलता
हुआ महसूस हुआ. उसके मुँह से फिर एक आह निकल पड़ी जो आधी मज़े में डूबी हुई थी और
आधी एक इनकार में जो ठाकुर को रोकने के लिए थे. दूसरे ही पल नाडा खुल गया, पेटीकोट ढीला हुआ और ठाकुर का हाथ उसके पेटीकोट
में घुसकर पॅंटी से होता सीधा उसकी चूत पे जा पहुँचा.
रूपाली
के जिस्म में करेंट दौड़ने लगा. जिस्म झटके मारने लगा और उसने अपनी टांगे ज़ोर से
बंद कर ली. ठाकुर ने उसकी चूत को उपेर से रगड़ना शुरू कर दिया और अपनी एक टाँग
उसके उपेर ले जाकर फिर रूपाली की दोनो टाँगो को फेला दिया. वो अब भी एक हाथ से
उसके दोनो हाथों को पकड़े हुए थे. ठाकुर का हाथ एक बार फिर उसकी टाँगो के बीचे गया
और धीरे से एक अंगुली रूपाली की चूत में दाखिल हो गयी और अंदर बाहर होने लगी.
अब
रूपाली की टांगे खुद ही खुल चुकी थी. उसने अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश भी बंद कर दी
थी. ठाकुर एक उंगली से उसकी चूत मारने लगे और बारी बारी दोनो निपल्स चूसने लगे.
रूपाली से जब बर्दाश्त नही हुआ तो उसके अपने एक हाथ साइड किया और ठाकुर का लंड
धोती के उपेर से पकड़के दबाने लगी. उसने अब ठाकुर को रोकने की सारी कोशिश बिल्कुल
बंद कर दी थी. उसका लंड पकड़ना ठाकुर के लिए जैसे एक इशारा था. वो फ़ौरन उठे और
उसका पेटिकोट उतारकर फेंक दिया. रूपाली को एक पल के लिए बिठाया और उसका ब्लाउस और
ब्रा भी एक तरफ कमरे में उच्छाल दिया गया. अब रूपाली अपने ससुर के सामने बिल्कुल
नंगी पड़ी थी. उसके हाथ खुद बखुद आगे को आकर उसकी चूचियों की ढकने की नाकाम कोशिश
करने लगे. ठाकुर ने उसकी दोनो टांगे फेलाइ और घुटनो मॉड्कर चूत बिल्कुल लंड के
सामने कर ली. रूपाली की आँखों के सामने फिर वही नज़ारा आ गया जब ये लंड पहली बार
उसकी चूत में घुसा था. फिर वही दर्द याद आया तो जोश एक पल में गायब हो गया. जो चूत
अब तक गीली और खुली गयी थी फ़ौरन सिकुड गयी. उसने ठाकुर की तरफ देखा जो लंड उसकी
चूत पे रख चुके थे और अंदर डालने की कोशिश कर रहे थे पर एक तो लंड इतना मोटा और
उपेर से रूपाली की चूत जो सूख चुकी थी. लंड अंदर जा ही नही रहा था.
ठाकुर
ने रूपाली की तरफ देखा जैसे कह रहे हों के "तुम अभी तैय्यार नही हो बहू"
और उसके उपेर से हटने लगे. रूपाली ने फ़ौरन हाथ आगे करके लंड पकड़ा और अपनी चूत के
मुँह पे रख दिया और अंदर को दबाने लगी. ठाकुर इशारा समझ गये और उन्होने एक तेज़
धक्का मारा. लंड का अगला हिस्सा रूपाली की चूत के अंदर था.
रूपाली
को एक हल्की सी चुभन महसूस हुई और उसके अपने ससुर को अपने उपेर खींच कर उनसे लिपट
गयी. ठाकुर ने उसके मुड़े हुए घुटनो को अपने हाथ से पकड़ा और लंड धीरे धीरे अंदर
बाहर करने लगे. हल्के हल्के धक्को के साथ लंड चूत में और अंदर जाता रहा और रूपाली
की आँखें फेल्ती चली गयी. उसे दर्द होना शुरू हो गया था पर ये दर्द पिच्छले दर्द
के मुक़ाबले कुच्छ नही था. इस दर्द में मज़ा ज़्यादा था.लंड काफ़ी हद तक अंदर जा
चुका था. ठाकुर ने एक आखरी बार लंड थोड़ा सा बार खींचकर ज़ोर से धक्का मारा और लंड
पूरा रूपाली की चूत में घुसता चला गया. ठाकुर की टटटे आकर रूपाली की गांद से टकरा
गये.
रूपाली
के मुँह से हल्की सी चीख निकल गयी. आँखें फेल गयी, मुँह
खुल गया और माथे पे सिलवटें पड़ गयी. उसकी कमर ने ज़ोर से झटका मारा और टांगे सीधी
होकर ठाकुर की गिरफ़्त से आज़ाद हो गयी. रूपाली ने कसकर अपने ससुर को अपने से
चिपका लिया और टांगे मोड़ कर उनकी कमर पर कस दी. लंड अब चूत में अंदर बाहर होना
शुरू हो गया था और रूपाली की चुदाई शुरू हो गयी थी. ठाकुर उसके उपेर पड़े हुए उसे
बराबर चोदे जा रहे थे. धक्को में अब तेज़ी आ गयी थी और रूपाली की चूत फिर से पूरी
फेल गयी. उसकी आँखें फिर से बंद हो गयी और रात में भी जैसे दिमाग़ में सूरज की
रोशनी सी फेल गयी. चूत पे पड़ता हर धक्का उसे जन्नत का नज़ारा करा रहा था. जाने
कितनी देर वो ऐसे ही पड़ी चुदवाती रही. उसे अपनी टाँगो पे ठाकुर के हाथ महसूस हुए
वो उन्हें सीधी कर रहे थे. ठाकुर उठके सीधे बैठे और रूपाली को करवट से लिटा दिया
और खुद उसके पिछे की तरफ लेट गये. लंड अब भी चूत में ही था. रूपाली ने करवट लेकर
पास रखे तकिये को ज़ोर से पकड़ लिया. अब वो करवट से लेटी हुई थी. ठाकुर उसके पिछे
से करवट लेकर उससे चिपक कर लेटे हुए थे. उनका चौड़ा सीना उसकी पीठ पे लग रहा था और
एक हाथ रूपाली की चूचियों की बेरहमी से मसल रहा था. लंड पिछे से चूत में अंदर बाहर
रहा था और ठाकुर के लंड के पास का अगला हिस्सा रूपाली के गांद से टकरा रहा था.
रूपाली की आहें अब तेज़ होकर कमरे में गूंजने लगी थी. एक बार ठाकुर ने ज़ोर से
धक्का मारकर लंड बाहर की तरफ खींचा तो लंड पूरा ही बाहर निकल गया. रूपाली को लगा
जैसे उसके जिस्म का ही एक हिस्सा बाहर चला गया हो और वो फिर से लंड लेने को तड़प
उठी. उसने जल्दी से हाथ पिछे ले जाकर लंड पकड़कर चूत में घुसाने की कोशिश की पर
ठाकुर तब तक ऑलरेडी लंड घुसाने की कोशिश कर रहे थे.दोनो करवट से लेटे हुए थे.
ठाकुर उसके पिछे थे और रूपाली की भारी भारी उठी हुई गांद होने के कारण लंड को चूत
का मुँह नही मिल रहा था. रूपाली ने भी हाथ नीचे करके लंड पकड़ना चाहा ताकि चूत का
रास्ता दिखा सके. ऐसे ही एक कोशिश में लंड फिसल कर रूपाली के गांद पे आ गया और
ठाकुर ने आगे घुसने की कोशिश को तो रूपाली को लंड अपनी गांद में घुसता महसूस हुआ.
वो चिहुनक कर आगे की तरफ हो गयी ताकि लंड गांद में ना घुसे. ठाकुर को उसकी इस हरकत
से पता चल गया के वो ग़लती से लंड कहाँ घुसा रहे थे और उनके दिल में रूपाली की
गांद मारने की ख्वाहिश उठी. उसने रूपाली का चेहरा अपनी तरफ किया और उससे नज़र
मिलाई जैसे रूपाली की पर्मिशन माँग रहे हों उसकी गांद मारने के लिए. रूपाली एक पल
को रुकी और वासना के कारण अपने पलक झपका कर अपनी मंज़ूर दे दी. वो फिर अपने करवट
पे हो गयी और तकिया ज़ोर से पकड़ लिया ताकि गांद पे होने वाले हमले को झेल सके.
ठाकुर ने पिच्छ से लंड फिर उसकी गांद पे रखा और घुसने की कोशिश की पर लंड मोटा
होने की वजह से नाकाम रहे. थोड़ी देर ऐसे ही कोशिश करने के बाद वो उठ बैठे. रूपाली
का पेट पकड़ा और उसे उठाकर बिस्तर पे घुटनो के बल झुका दिया. अब रूपाली एक कुतिया
की तरह अपने ससुर के सामने झुकी हुई थी. चूचियाँ सामने लटक रही थी. सर उसने सामने
तकिये पे रख दिया और टांगे फेला दी. आज वो बिस्तर पे पहली बार किसी मर्द के सामने
झुकी थी और वो भी अपने ससुर के सामने. ये तो उसने तब भी नही किया था जब उसके पति
ने उसे झुकने को कहा था.
ठाकुर
ने पीछे से उसकी गांद पे हाथ रखे और थोडा फेलाया. लंड अब भी रूपाली की चूत के रस
से भीगा हुआ था. उन्होने फिर से लंड को रूपाली की गांद पे टीकाया और आगे को दबाने
लगे. लंड का दबाव गांद पे पड़ा तो रूपाली को अपनी गांद खुलती हुई महसूस हुई और
दर्द की एक तेज़ ल़हेर उसके जिस्म में दौड़ गयी. वो अगले ही पल बिस्तर पे बैठ गयी
और ठाकुर की तरफ देखकर सर इनकार में हिलाया जैसे गांद मारने के लिए मना कर रही हो.
ठाकुर
ने मुस्कुरा कर उसके इनकार को क़बूल कर लिया और फिर झुकने को कहा. रूपाली समझ गयी
के अब ठाकुर उसे झुकाके चूत मारना चाहते हैं. वो फिर झुक गयी. टांगे फेला दी और
चूत अपने ससुर के सामने पेश कर दी. अगले ही पल लंड फिर से उसकी चूत में था और
धक्के फिर शुरू हो गये. रूपाली के मज़े का ठिकाना ना रहा. आज वो पहली बार इस
पोज़िशन में चुद रही थी. ठाकुर का धक्का जैसे ही उसकी चूत पे पड़ता लंड चूत की
गहराई तक उतर जाता, उसका सर तकिये में धस जाता
और दोनो चूचियाँ हिलने लगती. रूपाली ने अपने एक हाथ से खुद ही अपनी चूचियाँ दबानी
शुरू कर दी. ठाकुर के धक्को में अब तेज़ी आ गयी. वो किसी पागल सांड़ की तरह उसकी
चूत पे धक्के मार रहे थे. हाथों से उसकी कमर को मज़बूती से पकड़ रखा था और लंड चूत
में पेले जा रहे थे.
रूपाली
को महसूस हुआ के अब तक उसके ससुर ने एक शब्द भी मुँह से नही कहा है. उसने झुके
झुके ही अपनी आहह आहह के बीच ठाकुर से पुचछा
"आप
क्या कर रहे हैं पिताजी?"
जवाब
ना आया पर हां चूत पे धक्के और ज़ोर से पड़ने लगे. लंड और बेरहमी से चूत में अंदर
बाहर होने लगा. रूपाली का अब गला सूखने लगा था. उसने फिर सवाल दोहराया.
"आप
क्या कर रहे हैं पिताजी?"
इस
बार भी कोई जवाब नही आया. चूत पे धक्के बराबर पड़ते रहे. ठाकुर का एक हाथ अब
रूपाली एक छाति पे आ चुका था. रूपाली ने फिर पुचछा
"आप
क्या कर रहे हैं पिताजी?"
इस
बार ठाकुर धीरे से बोले, जैसे शर्मा रहे हों.
"हम
आपसे प्यार कर रहे हैं बेटी"
"नही
पिताजी" रूपाली की आह आह अब कमरे में गूँज रही थी " बताइए ना आप क्या कर
रहे हैं"
"हम
आपको अपना बना रहे हैं बेटी" ठाकुर ने कहा तो रूपाली को हल्की सी झल्लाहट हुई
"नही
पिताजी. आप चोद रहे हैं हमें. आप अपनी बहू की चूत मार रहे हैं."
और
जैसे रूपाली की बात ने कमाल कर दिया. ठाकुर . अंदर एक नयी ताक़त से आ गयी. हाथों
से उसकी गांद को ज़ोर से पकड़ा और ऐसे धक्के मारने लगे जैसे रूपाली की चूत फाड़
देना चाहते हों.
"आप
अपनी बहू को चोद रहे हैं पिताजी" मज़ा अचानक बढ़ जाने के करें रूपाली इस बार
लगभग चिल्लाते हुए बोली " अपनी बहू की चूत में लंड घुसा रखा है आपने"
अपने
मुँह से निकलती बातें सुनकर रूपाली को खुद भी हैरत हो रही थी. ये सब उसका पति उससे
बुलवाना चाहता था पर वो कभी नही बोलती थी और आज खुद ही बोले जा रही थी. हैरत की
बात ये थी के अपने मुँह से इन शब्दों का इस्तेमाल सुनकर वो खुद भी और गरम होती जा
रही थी
"हां
हम आपको चोद रहे हैं बेटी. आपकी चूत में अपना लंड पेल रहे हैं" कहते हुए
ठाकुर जैसे पागल हो उठे
"चोदो
पिताजी, और ज़ोर से चोदो"
रूपाली भी साथ साथ चिल्ला उठी.
बेड
के हिलने की आवाज़ शायद पूरी हवेली में गूँज रही थी. कमरे में वासना का एक तूफान
आया हुआ था. रूपाली अपने ही ससुर के सामने कुतिया बनी हुई थी और वो पिछे से उसकी
चूत पे पागलों की तरह धक्के मारने लगे. अचानक धक्के इतने ज़ोर से पड़ने लगे की
रूपाली का दिल उसके मुँह को आने लगा. उसका सर सामने बेड के किनारे से जाके लगने
लगा और फिर एक धक्का इतनी ज़ोर से पड़ा के उसे लगा के वो अब मर जाएगी. लंड पूरा
चूत में धस्ता चला गया और एक गरम सा पानी उसकी चूत को भरने लगा. उस गरम सी चीज़ के
चूत में भरते ही रूपाली की चूत ने भी पानी छ्चोड़ दिया. उसकी आँखों के आगे तारे
नाचने लगी. उसे लगा वो बेहोश होने वाली है. अब झुके रहने की हिम्मत उसमें नही थी.
वो बिस्तर पे उल्टी लेट गयी और ठाकुर उसके उपेर लेट गये. लंड अब भी चूत में
पिचकारी मार रहा था और रूपाली की चूत किसी नदी में बदल गयी थी जो पानी छ्चोड़े जा
रही थी. इतना मज़ा उसे कभी नही आया था. उसके पलके भारी हो चली थी और बंद होने लगी.
उसने बंद होती पलकों से सामने शीशे की और देखा तो उसमें फिर से दरवाज़ा हल्का सा
खोलकर बाहर से सब नज़ारा देखता भूषण नज़र आया.
सुबह
कुच्छ शोर सुनकर रूपाली की आँख खुली तो देखा के वो अब भी अपने ससुर के बिस्तर पर
ही थी. उठकर बैठी तो एहसास हुआ के वो पूरी तरह से नंगी पड़ी, थी. जिस्म पर कोई कपड़ा नही था और ना ही चादर
भी ओढ़ रखी थी. कमरे के बीचो बीच रखे बड़े से बिस्तर पे पूरी तरह से खुली हुई नंगी
सो रही थी. रात की सारी कहानी एक झटके में उसके ज़हेन में दौड़ गयी और उसने जल्दी से चादर
खींचकर अपने चारो तरफ लपेट ली.उसे कपड़े बिस्तर के पास नीचे पड़े हुए थे. रूपाली
बिस्तर पे बैठे बैठे ही झुकी और अपने कपड़े उठाए तो टाँगो में हल्का सा दर्द महसूस
हुआ. ठाकुर ने उसे कल रात 3 बार चोदा था. जब भी बीच में
उनकी आँख खुलती वो रूपाली पे चढ़कर चूत में लंड घुसा देते. रूपाली की आँख भी चूत
में लंड के घुसने से ही खुलती थी. उसकी चूत में अभी भी हल्का हल्का सा दर्द हो रहा
था. चूचियाँ अभी भी हल्की हल्की सी लाल थी और गले पे ठाकुर के दांतो के हल्के से
निशान बने हुए थे. वो शरम से दोहरी हो गयी पर ये भी सच था के कल रात उसे अपने औरत
होने का पहली बार एहसास हुआ था. जिस्म से जो आनंद मिलता है उसका पता उसे कल रात
चला था. अपने पति से चुदवाते वक़्त तो उसे बस इस बात का इंतेज़ार होता था के कब वो
ख़तम करके उसके उपर से उतर पर अपने ससुर के साथ उसने जवानी के मज़े पूरी तरह लूटे.
पहली बार सिर्फ़ टांगे खोलकर चुदवाया नही बल्कि कई पोज़िशन्स में अपनी चूत ठाकुर
के सामने पेश करी. पहली बार गांद मरवाने की भी कोशिश की. उसे खुशी भी हुई और गम भी
के ये सुख उसने अपने पति को कभी नही दिया.
बाहर
अब भी कोई ऊँची आवाज़ में बोल रहा था. रूपाली जल्दी से उठकर खड़ी हुई और अपने
जिस्म पे कपड़े डालकर बाहर आने को हुई थी के दरवाज़े पे रुक गयी. बाहर जो कोई भी
था अगर रूपाली को ठाकुर के कमरे से सुबह सुबह इस हालत में बाहर आता देखता तो सब
समझ जाता. वो दरवाज़े के पास ही कान लगाकर सुनने लगी और जल्दी ही समझ आ गया के
आवाज़ किसकी थी. वो ठाकुर का अपना भतीजा जय था जो ठाकुर साहब से किसी बात पे बहेस
कर रहा था.
"चाचा
जी आप सोच लीजिए. मैं आपको जीतने पैसे आप चाहें देने को तैय्यार हूँ पर ये हवेली
मुझको चाहिए" जय कह रहा था
"कौन
से पैसो की बात कर रहे हो जय" ठाकुर की आवाज़ आई " वो पैसे जो मेरे ही
हैं और जो तुमने मुझसे चुराए हैं?"
"वो सब
अब मेरा है चाचा जी. और क्या चुराया मैने? आप और
मेरे पिताजी इस जयदाद में बराबर के हिस्सेदार थे पर आपने उनको क्या दिया? मैने वही वापिस लिया है जो मेरा अपना था और अब
इस हवेली को हासिल करके रहूँगा" जय चिल्ला रहा था और रूपाली को यकीन नही हो
रहा था के ठाकुर उसकी बात सुन रहे हैं. एक वक़्त था के अपने सामने आवाज़ ऊँची करने
वाले की वो गर्दन काट दिया करते थे.
बहेस
कुच्छ देर और चलती रही थोड़ी देर बाद जय धमकी देकर चला गया. रूपाली बाहर निकालने
की सोच ही रही थी के दरवाज़ा खुला और ठाकुर अंदर आए. उसे देखकर रुक गये और
मुस्कुराते हुए बोले
"तुम
कब उठी बेटी?"
"बस
अभी थोड़ी देर पहले. ये आदमी कौन था पिताजी?" रूपाली ने पुछा जबकि वो अच्छी तरह से जानती थी के बाहर कौन
आया था. ये कहानी वो भूषण से सुन चुकी थी.
"कोई
नही. तुम छ्चोड़ो इस बात को. भूषण अपने कमरे में गया हुआ है. इससे पहले के वो
वापिस आए तुम अपने कमरे में चली जाओ."
रूपाली
ने ठाकुर से इस वक़्त कुच्छ पुच्छना मुनासिब नही समझा. उसने अपनी सारी का पल्लू
ठीक किया और अपने कमरे में आ गयी. कमरे में आकर उसने कपड़े उतारे और बात टब में
जाके बैठ गयी. कल रात की सारी कहानी फिर उसके दिमाग़ में चलने लगी और वो सोचने लगी
के आगे क्या करे. ठाकुर में आया बदलाव वो देख चुकी थी. ठाकुर ने शराब को हाथ भी
नही लगाया था और अब ज़िंदगी की और लौट रहे थे. शायद उनके अंदर वही मर्द लौट आया था
जो पहली कहीं सो गया था. रूपाली को अपना ये मकसद तो पूरा होता दिख रहा था पर दूसरा
मक़सद अभी भी अधूरा था. वो अब तक ऐसी कोई जानकारी हासिल नही कर सकी थी जिससे ये
पता चल सके के उसके पति के खून की वजह क्या थी.
उसका
ध्यान जय पे गया. अगर पुरुषोत्तम ज़िंदा होता तो कभी जय को वो ना करना देता जो
उसके मरने के बाद जय ने किया. सारे ज़मीन जायदाद पुरुषोत्तम ही देखता था और हर
चीज़ पे उसकी पकड़ थी. उसकी मौत का सबसे ज़्यादा फयडा जय को हुआ जिसने उसके जाते
ही ठाकुर की पूरी जायदाद हड़प ली. वही एक शख्स था जो पुरुषोत्तम के मरने का एक
कारण अपने पास रखता था. उसने मॅन ही मॅन जय से मिलने का इरादा कर लिया पर मुसीबत
ये थी के उससे मिले कैसे? ठाकुर अपने घर की बहू को इस
बात की इजाज़त कभी नही देंगे. और वो जय से मिलके क्या करे? कैसे इस बात का पता लगाए के जय ने उसके पति को
क्यूँ मारा?
यही
सोचती रूपाली बाथरूम से बाहर निकली. कपड़े पहनकर नीचे आई तो ठाकुर कहीं बाहर जा
चुके थे. भूषण घर की सफाई में लगा हुआ था.
वो
नीचे आई तो भूषण ने उसपे एक नज़र डाली और फिर काम में लग गया. भूषण को देखते ही
रूपाली को चाभी वाली बात याद आई.
"वो
चाबी कहाँ है काका?" उसने
भूषण से पुचछा
"कौन
सी चाभी?" भूषण
उसकी तरफ देखने लगा
"बनो
मत काका. वही चाबी जो आपने बगीचे से उठाई थी. वही चाभी जो आपको लगता है के उस आदमी
ने गिराई थी जो रात को हवेली में आया था" रूपाली ने आवाज़ थोड़ी ऊँची करते
हुए कहा
"वो
मेरे कमरे में है" भूषण उसकी और देखते हुए बोला. रूपाली ने महसूस किया के वो
उसके गले पे बने हुए निशान की तरफ देख रहा था
"लेकर
आइए. मैं देखना चाहती हूँ" रूपाली ने निशान को ढकने की कोई कोशिश नही की.
"अभी
लता हूँ" भूषण बाहर चला गया.
उसके
जाने के बाद रूपाली वहीं सोफे पे बैठ गयी. उसके दिमाग़ में दो बातें आई. एक तो ये
के एक भूषण ही था जो जय से मिलने में उसकी मदद कर सकता था और दूसरे ये के उसने अब
तक सिर्फ़ कामिनी का कमरा देखा था. घर के बाकी कमरो में तलाशी अभी बाकी थी. उसका
ध्यान सरिता देवी यानी अपनी सास की तरफ गया. बीमारी के वक़्त उनका कमरा अलग कर
दिया था. वो अपने पति के साथ नही सोती थी. भूषण ने कहा था के हवेली में आने वाले
अजनबी को उन्होने भी देखा था तो किसी से कुच्छ कहा क्यूँ नही? रूपाली ने उनके कमरे की तलाशी लेने का इरादा
किया.
तभी भूषण
वापिस हवेली में आता दिखाई दिया.
भूषण
ने लाकर चाबी रूपाली के हाथ में थमा दी. रूपाली ने गौर से देखा तो चाभी किसी आम से
ताले में लगने वाली चाभी थी.
"ये
चाभी बनवाई गयी है बेटी" भूषण ने कहा
"क्या
मतलब?" रूपाली
ने पुचछा
"मतलब
ये के जिस ताले को ये खोलती होगी,
ये
उसकी असली चाभी नही है. ये किसी ने असली चाभी की नकल बनवाई है. ये देखो घिसने के
निशान" भूषण ने चाभी के आगे की तरफ इशारा किया
रूपाली
ने ध्यान दिया. भूषण सच कह रहा था. चाभी बनवाई गयी थी. सामने के तरफ घिसने के
निशान सॉफ देखे जा सकते थे
"हवेली
में कहीं इस तरह का कोई ताला नही है" भूषण ने कहा " तो ज़ाहिर के ये
चाभी इस हवेली की नही है"
"ये
चाभी मैं रख रही हूँ काका" कहते हुए रूपाली ने चाभी अपनी मुट्ठी में बंद कर
ली
"तुम
इसका क्या करोगी?" भूषण
ने पुचछा
"वही
जो आपने नही किया" कहते हुए रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. पीछे हैरान
परेशान खड़े भूषण को छ्चोड़कर
"जाने
ये क्या करना चाहती है पर वो जो भी है, अच्छा
नही है" सोचते हुए भूषण भी हवेली के बाहर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया
अपने
कमरे में आकर रूपाली ने कपड़े बदलकर शलवार कमीज़ पहन ली और अपने बिस्तर पर गिर
पड़ी. उसके दिमाग़ में चल रहे सवालो में से एक का भी जवाब उसे नही मिला था बल्कि
और काई सवाल खड़े हो गये थे. कौन था जो हवेली में रात को आता जाता था? कामिनी के पास सिगेरेत्टेस कहाँ से आती थी? चाबी की तरफ उसका कोई ख़ास ध्यान नही था पर फिर
भी उसने रख ली थी. ये कोई आम सी चाभी भी हो सकती थी. जो आदमी रात को हवेली में आता
था उसके घर या अलमारी की चाबी. बस एक ही बात थी चाभी के बारे में जो सोचने लायक थी
और वो ये के ये असली चाभी नही थी. जो भी ताला था ये उसकी एक नकल थी. और सबसे
ज़्यादा बात जो रूपाली को परेशान कर रही थी वो ये थी के रात को कोई हवेली में आया
था इस बात का ज़िक्र उसकी सास ने किसी से क्यूँ नही किया? कौन सी बात थी जिसे वो च्छूपा रही थी?
सरिता
देवी की तरफ ध्यान गया तो रूपाली को उनके कमरे की तलाशी लेने का ख्याल आया. हवेली
की चाबियाँ अब भी उसके पास ही थी. सरिता देवी का कमरा बीमारी के वक़्त अलग कर दिया
गया था डॉक्टर के कहने पे. डॉक्टर ने कहा था के जब तक सरिता देवी ठीक हों उनका
ठाकुर से दूर रहना बेहतर होगा. पर सरिता देवी कभी ठीक नही हुई. लंबी बीमारी के बाद
चल बसी.
रूपाली
सरिता देवी के कमरे के आगे पहुँची और ताला खोलकर अंदर दाखिल हुई. अंदर कमरे में
घुसकर ही इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता था के यहाँ किसी की मौत हुई थी. अजीब
मनहूसियत सी थी कमरे के अंदर. दवाई की महेक कमरे में अब भी मौजूद थी. रूपाली कमरे
में आकर थोड़ी देर खड़ी यही सोचती रही के कहाँ से शुरू करे.कमरे में ज़्यादा समान
नही था. बस एक अलमारी जिसमें सरिता देवी के कुच्छ कपड़े रखे थे और एक टेबल जिसपे
उनकी दवाइयाँ रखी होती थी. रूपाली कमरे में टहलती खिड़की तक पहुँची और खोलकर बाहर
देखने लगी. सामने झाड़ियों का एक जंगल उगा हुआ था. कभी यहाँ पर फूलों का एक
खूबसूरत बगीचा होता था. रूपाली को फ़ौरन एहसास हुआ के इस जगग पे खड़े होकर पुर
बगीचे का नज़ारा उपेर से मिलता था. अगर कोई बगीचे में था तो रात के अंधेरे में भी
सॉफ नज़र आता तो अगर भूषण जो कह रहा है वो सच है, तो
सरिता देवी ने उस रात उस आदमी को ज़रूर देखा होगा पर किसी से कुच्छ कहा नही.
रूपाली
पलटकर फिर कमरे में आई और सरिता देवी के कपड़े उठाकर बिस्तर पर रखने लगी. अलमारी
पूरी खाली कर दी पर कुच्छ हाथ ना आया. उसने कमरे में रखे सोफे के गद्दे हटाए पर
वहाँ भी कुच्छ ना मिला. बिस्तर की चादर हटाकर एक तरफ कर दी. थोड़ी देर में पूरा
कमरा उथल पुथल हो चुका था पर रूपाली के हाथ सिर्फ़ निराशा ही लगी.
तक कर
रूपाली वहीं सोफे पे बैठ गयी और दरवाज़े की तरफ नज़र की तो उसके होश उड़ गये. वहाँ
खड़ा भूषण आँखें फाडे उसे देख रहा था. वो समझ चुका था के रूपाली कमरे की तलाशी ले
रही है रूपाली झटके से उठकर खड़ी हो गयी और भूषण की तरफ देखने लगी. उसका दिल काँप
उठा था. अगर भूषण ने जाकर ठाकुर को बता दिया तो रूपाली क्या कहेगी के वो क्या कर
रही थी और क्यूँ कर रही थी? उसका सारा प्लान बिगड़
जाएगा.
उसने
दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और तेज़ कदमो से भूषण की तरफ बढ़ी. भूषण ने उसे
पास आता देखा तो दो कदम पिछे हटा. रूपाली एक ही पल में उसके करीब पहुँची और उसे
धक्का देकर दीवार से लगा दिया. इससे पहले के भूषण कुच्छ समझ पता रूपाली उससे सॅट
गयी और अगले ही पल दोनो के होंठ मिल चुके थी. रूपाली ने भूखी शेरनी की तरफ भूषण के
होंठो को चूसना शुरू कर दिया,
अपनी
चूचियाँ भूषण की छ्चाटी से चिपका दी और नीचे अपने हाथ से भूषण का लंड पकड़ लिया.
उसे सॉफ महसूस हो रहा था के भूषण का पूरा जिस्म काँपने लगा था. आख़िर 70 साल का बुद्धा था बेचारा. रूपाली ने एक हाथ से
भूषण का पाजामा खोला और उसे नीचे सरका दिया. अगले ही पल भूषण के लंड उसके हाथ में जिसने उसे हिलाना शुरू कर दिया. भूषण काँप
ज़रूर रहा था पर पिछे हटने की कोई कोशिश नही कर रहा था. उल्टे उसका एक हाथ रूपाली
की कमर से घूमकर उसकी गांद पे आ गया था. रूपाली अब भी उसे होंठ चूस रही थी और उसके
लंड पे मूठ मार रही थी. वो इस कोशिश में थी के शायद बुढहा लंड खड़ा हो जाए पर ऐसा
हुआ नही. थोड़ी देर ऐसे ही लंड हिलाके भी जब उसे कुच्छ होता नज़र ना आया तो उसने
भूषण के लंड से हाथ हटाया और अपनी शलवार का नाडा खोल दिया. सलवार एक पल में सरक कर
नीचे जा गिरी.पॅंटी रूपाली ने अंदर पहन नही रखी थी. भूषण ने फिर से हाथ उसकी गांद
पे रख दिया पर अब शलवार बीच में नही थी. कमीज़ के अंदर से होता हाथ सीधा रूपाली की
नंगी गांद पे आ लगा.



